बे-मज़ा हर ख़ुशी हुई कैसे
मर्ज़ आवारगी हुई कैसे
मर गया क़ैस आग में जल कर
हीर फ़रहाद की हुई कैसे
कनख़ियों से हमें बता दीजे
यह अदा तिश्नगी हुई कैसे
चाक-चौबंद थे सभी निगरां
फिर यहां रहज़नी हुई कैसे
शाह हमदर्द है किसानों का
तो कहीं ख़ुदकुशी हुई कैसे
क़त्ल करके नमाज़ पढ़ आए
यह सनक बंदगी हुई कैसे
दा'व:-ए-नूर गर हक़ीक़त है
ख़ुल्द में तीरगी हुई कैसे ?
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बे-मज़ा: निरानंद; मर्ज़: रोग; आवारगी: यायावरी; क़ैस: मजनूं, लैला का प्रेमी; हीर: रांझे की प्रेमिका; फ़रहाद: शीरीं का प्रेमी; अदा: भंगिमा; तिश्नगी: तृष्णा; चाक-चौबंद: पूर्ण सन्नद्ध; निगरां: सतर्कता रखने वाले; रहज़नी: मार्ग में लूट; अर्श: आकाश; हमदर्द: सहानुभूति रखने वाला; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; दाव:-ए-नूर: प्रकाश का स्वत्व, यहां ईश्वर की उपस्थिति; गर: यदि; हक़ीक़त: वास्तविक; ख़ुल्द: स्वर्ग; तीरगी: अंधकार।
मर्ज़ आवारगी हुई कैसे
मर गया क़ैस आग में जल कर
हीर फ़रहाद की हुई कैसे
कनख़ियों से हमें बता दीजे
यह अदा तिश्नगी हुई कैसे
चाक-चौबंद थे सभी निगरां
फिर यहां रहज़नी हुई कैसे
शाह हमदर्द है किसानों का
तो कहीं ख़ुदकुशी हुई कैसे
क़त्ल करके नमाज़ पढ़ आए
यह सनक बंदगी हुई कैसे
दा'व:-ए-नूर गर हक़ीक़त है
ख़ुल्द में तीरगी हुई कैसे ?
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बे-मज़ा: निरानंद; मर्ज़: रोग; आवारगी: यायावरी; क़ैस: मजनूं, लैला का प्रेमी; हीर: रांझे की प्रेमिका; फ़रहाद: शीरीं का प्रेमी; अदा: भंगिमा; तिश्नगी: तृष्णा; चाक-चौबंद: पूर्ण सन्नद्ध; निगरां: सतर्कता रखने वाले; रहज़नी: मार्ग में लूट; अर्श: आकाश; हमदर्द: सहानुभूति रखने वाला; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; दाव:-ए-नूर: प्रकाश का स्वत्व, यहां ईश्वर की उपस्थिति; गर: यदि; हक़ीक़त: वास्तविक; ख़ुल्द: स्वर्ग; तीरगी: अंधकार।