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रविवार, 12 जनवरी 2014

जोशे-मौजे-चनाब...

ख़्वाब    ताज़ा  गुलाब  होते  हैं
ख़्वाहिशों  का  जवाब  होते  हैं

वो:  अगर  बेख़ुदी  में  मिलते  हैं
शायरी  की    किताब  होते  हैं

दिल  में  अरमान  जब  मचलते  हैं
जोशे - मौजे - चनाब  होते  हैं

बर्क़  जैसे  दिलों  पे  गिरती  है
आप  जब   बे-हिजाब  होते  हैं

रोज़  हम  राह  से  गुज़रते  हैं
रोज़    ईमां    ख़राब   होते  हैं

ख़्वाब  में  मिल  गए, ग़नीमत है 
घर  में  कब-कब  जनाब  होते  हैं ?

अश्के-तन्हाई  देख  लें  गिन  कर
हसरतों  का  हिसाब  होते  हैं !

                                              ( 2014 )

                                        -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ख़्वाहिशों: इच्छाओं; बेख़ुदी: आत्म-विस्मृति; बर्क़: तड़ित, आकाशीय विद्युत; बे-हिजाब: निरावरण; 
जोशे-मौजे-चनाब: चनाब, पंजाब में बहने वाली एक नदी; की लहरों का उत्साह; अश्के-तन्हाई: एकांत के अश्रु ।