उस पे ईमां रखें तो दीवाने
ख़ुद को ख़ुद-सा कहें तो दीवाने
तीरगी में जिएं तो बेचारे
शम्'अ बन कर जलें तो दीवाने
वो: सियासत करें तो हक़ उनका
हम शिकायत करें तो दीवाने
लोग बोली लगाएं ईमां की
और हम ना बिकें तो दीवाने
तुम तमाशा बनाओ औरों का
लोग तुम पर हंसें तो दीवाने
आप दिल तोड़ दें तो जायज़ है
हम तग़ाफ़ुल करें तो दीवाने
तुम जहां से कहो तो अफ़साना
हम ख़ुदा से कहें तो दीवाने !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: उस पे: ईश्वर पर; ईमां: आस्था; तीरगी: अंधकार; सियासत: राजनीति; हक़: अधिकार;
जायज़: उचित; तग़ाफ़ुल: उपेक्षा; अफ़साना: कहानी।
ख़ुद को ख़ुद-सा कहें तो दीवाने
तीरगी में जिएं तो बेचारे
शम्'अ बन कर जलें तो दीवाने
वो: सियासत करें तो हक़ उनका
हम शिकायत करें तो दीवाने
लोग बोली लगाएं ईमां की
और हम ना बिकें तो दीवाने
तुम तमाशा बनाओ औरों का
लोग तुम पर हंसें तो दीवाने
आप दिल तोड़ दें तो जायज़ है
हम तग़ाफ़ुल करें तो दीवाने
तुम जहां से कहो तो अफ़साना
हम ख़ुदा से कहें तो दीवाने !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: उस पे: ईश्वर पर; ईमां: आस्था; तीरगी: अंधकार; सियासत: राजनीति; हक़: अधिकार;
जायज़: उचित; तग़ाफ़ुल: उपेक्षा; अफ़साना: कहानी।