तरही ग़ज़ल
(अज़ीम शायर जनाब अमीर मीनाई साहब की ग़ज़ल से ली गई तरह "आज की बात को क्यूं कल पे उठा रक्खा है" पर कही गई)नौजवानी का कोई ख़्वाब बचा रक्खा है
एक आतिशफ़िशां सीने में जला रक्खा है
दिल हसीनों ने कराए पे चढ़ा रक्खा है
उसपे सरकार ने महसूल लगा रक्खा है
शह्र के अम्न को शोहदों ने बचा रक्खा है
इसपे हंगाम: शरीफ़ों ने मचा रक्खा है
क़त्ल कीजे कि हमें क़ैद कीजिए दिल में
आज की बात को क्यूं कल पे उठा रक्खा है
सब्र रखिए तो किसी रोज़ सुनाएं दिल से
हमने दीवान सितारों से सजा रक्खा है
कौन कमबख़्त पिलाता है यहां शैख़ों को
ये हमीं हैं कि सबेरे से बिठा रक्खा है
दौरे-हिज्रां ने हमें तोड़ दिया है इतना
वक़्त से क़ब्ल फ़रिश्तों को बुला रक्खा है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आतिशफ़िशां: ज्वालामुखी; कराए: किराया, भाड़ा; महसूल: कर, शुल्क; अम्न: शांति; शोहदों: उपद्रवियों; हंगाम:: उत्पात;
दीवान: काव्य-संग्रह; कमबख़्त: अभागा; शैख़: मद्य-विरोधी, धर्म-भीरु; दौरे-हिज्रा: वियोग-चक्र; क़ब्ल: पूर्व; फ़रिश्तों: मृत्यु-दूतों।