काश ! उसने जो ऐतबार कर लिया होता
हमने इस ज़िंदगी से प्यार कर लिया होता
दरिय:-ए-अश्क अगर ख़ुश्क़ ना हुआ होता
हमने हर ग़म को ख़रीदार कर लिया होता
लाख रुसवाइयों से आप-हम बचे रहते
एक-दूजे को ग़मग़ुसार कर लिया होता
माल-ओ-ज़र की जो चाहत हमें रही होती
अपने जज़्बात को बाज़ार कर लिया होता
जान थी लब पे और आप रास्ते में थे
हमने क्यूं कर न इंतज़ार कर लिया होता
क्या ज़रूरत थी दर्द-ए-इश्क़ सहे जाने की
दिल को अल्ल: का तलबगार कर लिया होता
चार दिन रोज़:-ओ-नमाज़ प' रह के क़ायम
रूह के बाग़ को गुलज़ार कर लिया होता !
( 2013)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ऐतबार: विश्वास; दरिय:-ए-अश्क: आंसुओं की नदी; ख़ुश्क़: शुष्क; रुसवाइयां: अपमान; ग़मग़ुसार: दुःख का साझीदार; माल-ओ-ज़र: धन-संपत्ति; जज़्बात: भावनाएं; लब: होंठ; तलबगार: ग्राहक, इच्छुक; रोज़:-ओ-नमाज़: व्रत और प्रार्थना; क़ायम: दृढ़; गुलज़ार: पुष्प-पल्लवित।
हमने इस ज़िंदगी से प्यार कर लिया होता
दरिय:-ए-अश्क अगर ख़ुश्क़ ना हुआ होता
हमने हर ग़म को ख़रीदार कर लिया होता
लाख रुसवाइयों से आप-हम बचे रहते
एक-दूजे को ग़मग़ुसार कर लिया होता
माल-ओ-ज़र की जो चाहत हमें रही होती
अपने जज़्बात को बाज़ार कर लिया होता
जान थी लब पे और आप रास्ते में थे
हमने क्यूं कर न इंतज़ार कर लिया होता
क्या ज़रूरत थी दर्द-ए-इश्क़ सहे जाने की
दिल को अल्ल: का तलबगार कर लिया होता
चार दिन रोज़:-ओ-नमाज़ प' रह के क़ायम
रूह के बाग़ को गुलज़ार कर लिया होता !
( 2013)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ऐतबार: विश्वास; दरिय:-ए-अश्क: आंसुओं की नदी; ख़ुश्क़: शुष्क; रुसवाइयां: अपमान; ग़मग़ुसार: दुःख का साझीदार; माल-ओ-ज़र: धन-संपत्ति; जज़्बात: भावनाएं; लब: होंठ; तलबगार: ग्राहक, इच्छुक; रोज़:-ओ-नमाज़: व्रत और प्रार्थना; क़ायम: दृढ़; गुलज़ार: पुष्प-पल्लवित।