गर्दिशे-ऐयाम से दिल हिल गया
आज का दिन भी बहुत मुश्किल गया
देख कर हमको परेशां दर्द से
आसमानों का कलेजा हिल गया
चाहते थे रोक लें तूफ़ान को
सब्र टूटा हाथ से साहिल गया
क़ातिलों की पैरवी करते हुए
साफ़ कहिए रहबरों ! क्या मिल गया
शाह की लफ़्फ़ाज़ियों में यूं फंसे
नौजवां से दूर मुस्तक़्बिल गया
राह मुश्किल थी बग़ावत की मगर
हर जियाला जानिबे-मंज़िल गया
हालते-अत्फ़ाले-दुनिया देख कर
क्या बताएं रूह में क्या छिल गया !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गर्दिशे-ऐयाम : दिनों का फेर; सब्र: धैर्य; साहिल: तट, किनारा; क़ातिलों: हत्यारों; पैरवी : पक्ष रखना, बचाव; रहबरों : नेता गण; लफ़्फ़ाज़ियों : शब्दजाल; मुस्तक़्बिल : भविष्य; बग़ावत : विद्रोह; जियाला : साहसी; जानिबे-मंज़िल : लक्ष्य की ओर; हालते-अत्फ़ाले-दुनिया : संसार के बच्चों की स्थिति; रूह : आत्मा।
आज का दिन भी बहुत मुश्किल गया
देख कर हमको परेशां दर्द से
आसमानों का कलेजा हिल गया
चाहते थे रोक लें तूफ़ान को
सब्र टूटा हाथ से साहिल गया
क़ातिलों की पैरवी करते हुए
साफ़ कहिए रहबरों ! क्या मिल गया
शाह की लफ़्फ़ाज़ियों में यूं फंसे
नौजवां से दूर मुस्तक़्बिल गया
राह मुश्किल थी बग़ावत की मगर
हर जियाला जानिबे-मंज़िल गया
हालते-अत्फ़ाले-दुनिया देख कर
क्या बताएं रूह में क्या छिल गया !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गर्दिशे-ऐयाम : दिनों का फेर; सब्र: धैर्य; साहिल: तट, किनारा; क़ातिलों: हत्यारों; पैरवी : पक्ष रखना, बचाव; रहबरों : नेता गण; लफ़्फ़ाज़ियों : शब्दजाल; मुस्तक़्बिल : भविष्य; बग़ावत : विद्रोह; जियाला : साहसी; जानिबे-मंज़िल : लक्ष्य की ओर; हालते-अत्फ़ाले-दुनिया : संसार के बच्चों की स्थिति; रूह : आत्मा।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-04-2017) को "बातों में है बात" (चर्चा अंक-2947) (चर्चा अंक-2941) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छी भावपूर्ण रचना है |शुभकामना |
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