क्या ग़रीबी गुनाह है कोई
या कि बदनाम राह है कोई
रो रहा है मसल-मसल कर दिल
ख़ुदकुशी का गवाह है कोई
दुश्मनी में ख़ुदा हुए साहिब
दोस्ती में तबाह है कोई
दीजिए क्या सज़ा दिवाने को
आशिक़ी भी गुनाह है कोई ?
दावते-हुक्मरां के मजमे में
एक भी बेगुनाह है कोई ?
कर रहा है सलाम शायर को
मुल्क का बादशाह है कोई !
मौत पुरसाने-हाल है अपनी
शुक्र है, ख़ैरख़्वाह है कोई
रात भर मुंतज़िर रहे ग़ालिब
और वादा-निबाह है कोई !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दावते-हुक्मरां: शासक का भोज; मजमे में : एकत्र जन, भीड़; पुरसाने-हाल: हाल पूछने वाला/ली; ख़ैरख़्वाह: शुभचिंतक; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; ग़ालिब: हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महान शायर; वादा-निबाह: वचन पालन करने वाला, यह शे'र हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब की प्रख्यात ग़ज़ल 'वो जो हममें-तुममें क़रार था...' के प्रति आदरांजलि स्वरूप ।
या कि बदनाम राह है कोई
रो रहा है मसल-मसल कर दिल
ख़ुदकुशी का गवाह है कोई
दुश्मनी में ख़ुदा हुए साहिब
दोस्ती में तबाह है कोई
दीजिए क्या सज़ा दिवाने को
आशिक़ी भी गुनाह है कोई ?
दावते-हुक्मरां के मजमे में
एक भी बेगुनाह है कोई ?
कर रहा है सलाम शायर को
मुल्क का बादशाह है कोई !
मौत पुरसाने-हाल है अपनी
शुक्र है, ख़ैरख़्वाह है कोई
रात भर मुंतज़िर रहे ग़ालिब
और वादा-निबाह है कोई !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दावते-हुक्मरां: शासक का भोज; मजमे में : एकत्र जन, भीड़; पुरसाने-हाल: हाल पूछने वाला/ली; ख़ैरख़्वाह: शुभचिंतक; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; ग़ालिब: हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महान शायर; वादा-निबाह: वचन पालन करने वाला, यह शे'र हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब की प्रख्यात ग़ज़ल 'वो जो हममें-तुममें क़रार था...' के प्रति आदरांजलि स्वरूप ।