हम ज़रा और झुक गए होते
अर्श के मोल बिक गए होते
साथ देते तिरी हुकूमत का
तो बहुत दूर तक गए होते
आपको मै नहीं मिली वर्ना
जाम छू कर बहक गए होते
दिल किसी का ख़राब हो जाता
हम ज़रा भी सरक गए होते
वो बग़लगीर तो हुए होते
गुल शहर के महक गए होते
एक दिन आप घर चले आते
लाख एहसान चुक गए होते
राह की मुश्किलें गिनी होतीं
सोचते और थक गए होते !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अर्श के मोल: आकाशीय, बहुत ऊंचे मूल्य पर; हुकूमत: सरकार; मै: मदिरा; जाम: मदिरा पात्र; बग़लगीर: आलिंगनबद्ध ।
अर्श के मोल बिक गए होते
साथ देते तिरी हुकूमत का
तो बहुत दूर तक गए होते
आपको मै नहीं मिली वर्ना
जाम छू कर बहक गए होते
दिल किसी का ख़राब हो जाता
हम ज़रा भी सरक गए होते
वो बग़लगीर तो हुए होते
गुल शहर के महक गए होते
एक दिन आप घर चले आते
लाख एहसान चुक गए होते
राह की मुश्किलें गिनी होतीं
सोचते और थक गए होते !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अर्श के मोल: आकाशीय, बहुत ऊंचे मूल्य पर; हुकूमत: सरकार; मै: मदिरा; जाम: मदिरा पात्र; बग़लगीर: आलिंगनबद्ध ।