बस, रिश्त:-ए-अज़ान बचा है जनाब से
दामन छुड़ा रहे हैं वो: ख़ाना-ख़राब से
मसरूर रहे हुस्ने-शह्र में कभी-कभी
हालांकि, दूर-दूर रहे हम शराब से
उन चश्मे-ख़ुशमिज़ाज के अंदाज़ देखिए
करते हैं छेड़-छाड़ दरारे-नक़ाब से
पर्दा किए हुए हैं ज़माने से आजकल
लेकिन न बच सके वो तिलिस्मे-सराब से
ज़र्रों की अहमियत जनाब भूल गए हैं
जबसे मिले ख़्याल किसी आफ़ताब से
यूं भी हुए शिकारे-अना हम विसाल में
मस्ला सुलझ सका न किसी भी किताब से
ख़ुद का रहे ख़्याल न सज्दे की फ़िक्र हो
गर हो कभी नमाज़ हमारे हिसाब से
उनका निज़ाम, उनकी अना, उनके फ़ैसले
ख़ुद को नवाज़ दें न ख़ुदा के ख़िताब से !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रिश्त:-ए-अज़ान: अज़ान का संबंध; दामन: पल्लू, संबंध; ख़ाना-ख़राब:गृह-विहीन, भटकने वाला; मसरूर: मदमत्त; हुस्ने-शह्र: नगर का सौन्दर्य; चश्मे-ख़ुशमिज़ाज: प्रसन्न-स्वभाव नयन; अंदाज़: भाव-भंगिमा; दरारे-नक़ाब: मुखावरण की संधि, बुर्क़े में देखने के लिए खुला स्थान; पर्दा: दूरी बनाना; तिलिस्मे-सराब: मृग-मरीचिका की माया; ज़र्रों: कणों; अहमियत: महत्ता; जनाब: महोदय, श्रीमान; ख़्याल: विचार; आफ़ताब: सूर्य, प्रसिद्ध व्यक्ति; शिकारे-अना: अहंकार-पीड़ित; विसाल: साक्षात्कार; मस्ला: समस्या; किताब: धर्म-ग्रंथ अथवा न्याय की पुस्तक; सज्दे: प्रणिपात; गर: यदि; निज़ाम: शासन; अना: अहंकार; नवाज़ना: उपकृत करना, देना; ख़िताब: उपाधि, पुरस्कार ।
दामन छुड़ा रहे हैं वो: ख़ाना-ख़राब से
मसरूर रहे हुस्ने-शह्र में कभी-कभी
हालांकि, दूर-दूर रहे हम शराब से
उन चश्मे-ख़ुशमिज़ाज के अंदाज़ देखिए
करते हैं छेड़-छाड़ दरारे-नक़ाब से
पर्दा किए हुए हैं ज़माने से आजकल
लेकिन न बच सके वो तिलिस्मे-सराब से
ज़र्रों की अहमियत जनाब भूल गए हैं
जबसे मिले ख़्याल किसी आफ़ताब से
यूं भी हुए शिकारे-अना हम विसाल में
मस्ला सुलझ सका न किसी भी किताब से
ख़ुद का रहे ख़्याल न सज्दे की फ़िक्र हो
गर हो कभी नमाज़ हमारे हिसाब से
उनका निज़ाम, उनकी अना, उनके फ़ैसले
ख़ुद को नवाज़ दें न ख़ुदा के ख़िताब से !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रिश्त:-ए-अज़ान: अज़ान का संबंध; दामन: पल्लू, संबंध; ख़ाना-ख़राब:गृह-विहीन, भटकने वाला; मसरूर: मदमत्त; हुस्ने-शह्र: नगर का सौन्दर्य; चश्मे-ख़ुशमिज़ाज: प्रसन्न-स्वभाव नयन; अंदाज़: भाव-भंगिमा; दरारे-नक़ाब: मुखावरण की संधि, बुर्क़े में देखने के लिए खुला स्थान; पर्दा: दूरी बनाना; तिलिस्मे-सराब: मृग-मरीचिका की माया; ज़र्रों: कणों; अहमियत: महत्ता; जनाब: महोदय, श्रीमान; ख़्याल: विचार; आफ़ताब: सूर्य, प्रसिद्ध व्यक्ति; शिकारे-अना: अहंकार-पीड़ित; विसाल: साक्षात्कार; मस्ला: समस्या; किताब: धर्म-ग्रंथ अथवा न्याय की पुस्तक; सज्दे: प्रणिपात; गर: यदि; निज़ाम: शासन; अना: अहंकार; नवाज़ना: उपकृत करना, देना; ख़िताब: उपाधि, पुरस्कार ।