दोस्ती में हमें वो जहां दे गए
ढाई ग़ज़ की ज़मीं आस्मां दे गए
दो घड़ी के लिए हमसफ़र वो हुए
जब गए दर्द का कारवां दे गए
हिज्र से क़ब्ल वो रू-ब-रू यूं हुए
चश्म को ख़ामुशी की ज़ुबां दे गए
ख़ूब रुस्वा किया आपकी नज़्म ने
दुश्मनों को नई दास्तां दे गए
उनके यौमे-शहादत पे तातील हो
इश्क़ में जान जो नौजवां दे गए
लोग फ़ाक़ाकशी से परेशान हैं
और फिर शाह झूठा बयां दे गए
मग़फ़िरत की दुआ की जिन्होंने वही
रूह को ज़ख़्म के भी निशां दे गए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हमसफ़र: सहयात्री; कारवां: यात्री-समूह; हिज्र : वियोग; क़ब्ल: पूर्व; रू-ब-रू : सम्मुख; चश्म : नयन; ख़ामुशी : मौन; ज़ुबां : भाषा, शब्दावली; रुस्वा : लज्जित; नज़्म : गीत, कविता; दास्तां : आख्यान; यौमे-शहादत : बलिदान दिवस; तातील: सार्वजनिक अवकाश; फ़ाक़ाकशी : उपवास, भुखमरी; मग़फ़िरत : मोक्ष; रूह : आत्मा।
ढाई ग़ज़ की ज़मीं आस्मां दे गए
दो घड़ी के लिए हमसफ़र वो हुए
जब गए दर्द का कारवां दे गए
हिज्र से क़ब्ल वो रू-ब-रू यूं हुए
चश्म को ख़ामुशी की ज़ुबां दे गए
ख़ूब रुस्वा किया आपकी नज़्म ने
दुश्मनों को नई दास्तां दे गए
उनके यौमे-शहादत पे तातील हो
इश्क़ में जान जो नौजवां दे गए
लोग फ़ाक़ाकशी से परेशान हैं
और फिर शाह झूठा बयां दे गए
मग़फ़िरत की दुआ की जिन्होंने वही
रूह को ज़ख़्म के भी निशां दे गए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हमसफ़र: सहयात्री; कारवां: यात्री-समूह; हिज्र : वियोग; क़ब्ल: पूर्व; रू-ब-रू : सम्मुख; चश्म : नयन; ख़ामुशी : मौन; ज़ुबां : भाषा, शब्दावली; रुस्वा : लज्जित; नज़्म : गीत, कविता; दास्तां : आख्यान; यौमे-शहादत : बलिदान दिवस; तातील: सार्वजनिक अवकाश; फ़ाक़ाकशी : उपवास, भुखमरी; मग़फ़िरत : मोक्ष; रूह : आत्मा।