अर्श पर तूफ़ां उठा आए युं ही
हम ख़ुदा का दिल चुरा लाए युं ही
चांद से कुछ दिल्लगी की बात की
और दीवाना बना आए युं ही
चश्म नादां जिस तरह बा-सब्र है
चैन बेबस रूह भी पाए युं ही
खोल कर रख दी हक़ीक़त सामने
शाह की नज़रें झुका आए युं ही
दांव पर है ज़िंदगी दहक़ान की
इक उमीदों की घटा छाए युं ही
क़ैद है दिल की रग़ों में जो लहू
अश्क बन कर आज बह जाए युं ही
उम्र भर ईमान पर क़ायम रहे
पर ख़ुदा को कौन समझाए युं ही !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अर्श: आकाश, स्वर्ग; दिल्लगी: मनोविनोद; चश्म: आंख; नादां: अबोध; बा-सब्र: धैर्यवान; बेबस: विवश;
रूह: आत्मा; हक़ीक़त: यथार्थ; दहक़ान: कृषक-जन; रग़ों: शिराओं, धमनियों; ईमान: आस्था।
हम ख़ुदा का दिल चुरा लाए युं ही
चांद से कुछ दिल्लगी की बात की
और दीवाना बना आए युं ही
चश्म नादां जिस तरह बा-सब्र है
चैन बेबस रूह भी पाए युं ही
खोल कर रख दी हक़ीक़त सामने
शाह की नज़रें झुका आए युं ही
दांव पर है ज़िंदगी दहक़ान की
इक उमीदों की घटा छाए युं ही
क़ैद है दिल की रग़ों में जो लहू
अश्क बन कर आज बह जाए युं ही
उम्र भर ईमान पर क़ायम रहे
पर ख़ुदा को कौन समझाए युं ही !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अर्श: आकाश, स्वर्ग; दिल्लगी: मनोविनोद; चश्म: आंख; नादां: अबोध; बा-सब्र: धैर्यवान; बेबस: विवश;
रूह: आत्मा; हक़ीक़त: यथार्थ; दहक़ान: कृषक-जन; रग़ों: शिराओं, धमनियों; ईमान: आस्था।