किधर ढूंढिएगा कहां खो गया
मियां मान लीजे कि दिल तो गया
उसे तिश्नगी ने न बख़्शा कभी
अकेला ख़राबात में जो गया
गुलों को न अब कोई इल्ज़ाम दे
कि मौसम रग़ों में ज़हर बो गया
मदारी बना शाह जिस रोज़ से
हक़ीक़त से क़िस्सा बड़ा गया
लबे-चश्म सैलाब घुटता रहा
मगर दाग़ दिल के सभी धो गया
किसे हौसला दें किसे बद्दुआ
कि क़ातिल मेरी क़ब्र पर रो गया
शबे-वस्ल का ज़िक्र मत छेड़िए
रहे जागते हम ख़ुदा सो गया !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तिश्नगी: सुधा; बख़्शा: छोड़ा; ख़राबात: मदिरालय; गुलों: फूलों; इल्ज़ाम: दोष, आरोप; रग़ों: शिराओं; मदारी: इंद्रजाल के खेल दिखाने वाला; हक़ीक़त: यथार्थ; क़िस्सा: आख्यान; लबे-चश्म: आंख की कोर पर; सैलाब: बाढ़; दाग़: कलंक; हौसला: सांत्वना; बद्दुआ: अशुभकामना; क़ातिल: हत्यारा; क़ब्र: समाधि; शबे-वस्ल: मिलन की निशा; ज़िक्र: उल्लेख।
मियां मान लीजे कि दिल तो गया
उसे तिश्नगी ने न बख़्शा कभी
अकेला ख़राबात में जो गया
गुलों को न अब कोई इल्ज़ाम दे
कि मौसम रग़ों में ज़हर बो गया
मदारी बना शाह जिस रोज़ से
हक़ीक़त से क़िस्सा बड़ा गया
लबे-चश्म सैलाब घुटता रहा
मगर दाग़ दिल के सभी धो गया
किसे हौसला दें किसे बद्दुआ
कि क़ातिल मेरी क़ब्र पर रो गया
शबे-वस्ल का ज़िक्र मत छेड़िए
रहे जागते हम ख़ुदा सो गया !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तिश्नगी: सुधा; बख़्शा: छोड़ा; ख़राबात: मदिरालय; गुलों: फूलों; इल्ज़ाम: दोष, आरोप; रग़ों: शिराओं; मदारी: इंद्रजाल के खेल दिखाने वाला; हक़ीक़त: यथार्थ; क़िस्सा: आख्यान; लबे-चश्म: आंख की कोर पर; सैलाब: बाढ़; दाग़: कलंक; हौसला: सांत्वना; बद्दुआ: अशुभकामना; क़ातिल: हत्यारा; क़ब्र: समाधि; शबे-वस्ल: मिलन की निशा; ज़िक्र: उल्लेख।