मेरे अल्फ़ाज़ मुझसे रूठ कर कुछ दूर बैठे हैं
कि जैसे वक़्त के हाथों सनम मजबूर बैठे हैं
करें किससे शिकायत दोस्तों की बेनियाज़ी की
वफ़ा के दफ़्तरों में भी तन-ए-रंजूर बैठे हैं
किसी दिन फिर नमी होगी निगाहों में मेह्रबां की
दुआ लेकर दरे-मेहबूब पर मशकूर बैठे हैं
अजब तस्वीर है इस दौर में बाग़े-सियासत की
इधर अमरूद कच्चे हैं उधर लंगूर बैठे हैं
मदारी मस्त है सरमाएदारों से गले मिल कर
नज़र जाती नहीं उसकी जिधर मज़दूर बैठे हैं
हमारा मर्तबा छोड़ो हमारा सिलसिला देखो
हमारे चाहने वाले रहे-मंसूर बैठे हैं
उतर आए ज़मीं पर हम ख़ुदा को छोड़ कर जबसे
सितारे आसमां पर आज तक बे-नूर बैठे हैं !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अल्फ़ाज़: शब्द (बहु.); सनम: प्रिय; मजबूर: विवश; बेनियाज़ी: निर्मोह, निर्ममता; वफ़ा: आस्था; तन-ए-रंजूर: रोगी, अस्वस्थ शरीर वाले; नमी: गीलापन, संवेदना; मेह्रबां: कृपालु; दुआ: प्रार्थना; दरे-महबूब: प्रिय का द्वार; मशकूर: आभारी; तस्वीर: परिदृश्य; बाग़े-सियासत: राजनीति का उद्यान; मदारी: मायावी, मायाजाल फैलाने वाला; मस्त: मदोन्मत्त; सरमाएदारों: पूंजीपतियों; नज़र: दृष्टि; मज़दूर: श्रमिक; मर्तबा: सामाजिक स्थान, वर्ग; सिलसिला: वंशानुक्रम; रहे-मंसूर: हज़रत मंसूर अ.स. के मार्ग पर, बलिदान के मार्ग पर; ज़मीं: पृथ्वी, संसार; सितारे: नक्षत्र; आसमां: आकाश; बे-नूर: निराभ्र, प्रकाशहीन।
कि जैसे वक़्त के हाथों सनम मजबूर बैठे हैं
करें किससे शिकायत दोस्तों की बेनियाज़ी की
वफ़ा के दफ़्तरों में भी तन-ए-रंजूर बैठे हैं
किसी दिन फिर नमी होगी निगाहों में मेह्रबां की
दुआ लेकर दरे-मेहबूब पर मशकूर बैठे हैं
अजब तस्वीर है इस दौर में बाग़े-सियासत की
इधर अमरूद कच्चे हैं उधर लंगूर बैठे हैं
मदारी मस्त है सरमाएदारों से गले मिल कर
नज़र जाती नहीं उसकी जिधर मज़दूर बैठे हैं
हमारा मर्तबा छोड़ो हमारा सिलसिला देखो
हमारे चाहने वाले रहे-मंसूर बैठे हैं
उतर आए ज़मीं पर हम ख़ुदा को छोड़ कर जबसे
सितारे आसमां पर आज तक बे-नूर बैठे हैं !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अल्फ़ाज़: शब्द (बहु.); सनम: प्रिय; मजबूर: विवश; बेनियाज़ी: निर्मोह, निर्ममता; वफ़ा: आस्था; तन-ए-रंजूर: रोगी, अस्वस्थ शरीर वाले; नमी: गीलापन, संवेदना; मेह्रबां: कृपालु; दुआ: प्रार्थना; दरे-महबूब: प्रिय का द्वार; मशकूर: आभारी; तस्वीर: परिदृश्य; बाग़े-सियासत: राजनीति का उद्यान; मदारी: मायावी, मायाजाल फैलाने वाला; मस्त: मदोन्मत्त; सरमाएदारों: पूंजीपतियों; नज़र: दृष्टि; मज़दूर: श्रमिक; मर्तबा: सामाजिक स्थान, वर्ग; सिलसिला: वंशानुक्रम; रहे-मंसूर: हज़रत मंसूर अ.स. के मार्ग पर, बलिदान के मार्ग पर; ज़मीं: पृथ्वी, संसार; सितारे: नक्षत्र; आसमां: आकाश; बे-नूर: निराभ्र, प्रकाशहीन।