यूं ज़ुबां फिसली तमाशा हो गया
हर हक़ीक़त का ख़ुलासा हो गया
बाम पर आकर खड़े वो क्या हुए
चांद का चेहरा ज़रा-सा हो गया
ख़्वाब में तस्वीर उनकी देख ली
चश्मे-तश्ना को दिलासा हो गया
दाम आटे-दाल के इतने बढ़े
क़र्ज़ में नीलाम कासा हो गया
शाह मुजरिम है गुलों के क़त्ल का
तितलियों पर इस्तगासा हो गया
उफ़ ! निज़ामे-स्याह की बदकारियां
अर्श तक गहरा कुहासा हो गया
मज़हबी तकरीर सुन कर ख़ुल्द में
दर्दे-सर फिर बेतहाशा हो गया !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ुबां: जिव्हा, शब्द; हक़ीक़त: यथार्थ, सच्चाई; ख़ुलासा: उद्घाटन; बाम: वातायन; चश्मे-तश्ना: तृषित नयन; दिलासा: सांत्वना, आश्वस्ति; दाम: मूल्य; क़र्ज़: ऋण; कासा: भिक्षा-पात्र; मुजरिम: अपराधी; गुलों: पुष्पों; क़त्ल: हत्या; इस्तगासा: वाद; निज़ामे-स्याह: अंधेर का राज्य; बदकारियां: कुकर्म; अर्श: आकाश; मज़हबी: धार्मिक; तकरीर: भाषण; ख़ुल्द: स्वर्ग; दर्दे-सर: सिर की पीड़ा; बेतहाशा: अत्यधिक, असीम ।
हर हक़ीक़त का ख़ुलासा हो गया
बाम पर आकर खड़े वो क्या हुए
चांद का चेहरा ज़रा-सा हो गया
ख़्वाब में तस्वीर उनकी देख ली
चश्मे-तश्ना को दिलासा हो गया
दाम आटे-दाल के इतने बढ़े
क़र्ज़ में नीलाम कासा हो गया
शाह मुजरिम है गुलों के क़त्ल का
तितलियों पर इस्तगासा हो गया
उफ़ ! निज़ामे-स्याह की बदकारियां
अर्श तक गहरा कुहासा हो गया
मज़हबी तकरीर सुन कर ख़ुल्द में
दर्दे-सर फिर बेतहाशा हो गया !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ुबां: जिव्हा, शब्द; हक़ीक़त: यथार्थ, सच्चाई; ख़ुलासा: उद्घाटन; बाम: वातायन; चश्मे-तश्ना: तृषित नयन; दिलासा: सांत्वना, आश्वस्ति; दाम: मूल्य; क़र्ज़: ऋण; कासा: भिक्षा-पात्र; मुजरिम: अपराधी; गुलों: पुष्पों; क़त्ल: हत्या; इस्तगासा: वाद; निज़ामे-स्याह: अंधेर का राज्य; बदकारियां: कुकर्म; अर्श: आकाश; मज़हबी: धार्मिक; तकरीर: भाषण; ख़ुल्द: स्वर्ग; दर्दे-सर: सिर की पीड़ा; बेतहाशा: अत्यधिक, असीम ।