सियासत चीज़ क्या है ये: ज़रा सा देख लेते हैं
लगा के आग बस्ती में तमाशा देख लेते हैं
हमें मालूम है उस ख़त में तुमने क्या लिखा होगा
तुम्हारे ज़ौक़ की ख़ातिर लिफ़ाफ़ा देख लेते हैं
बड़ा मासूम आशिक़ था न मिल पाए कभी उससे
चलो अब चल के छज्जे से जनाज़ा देख लेते हैं
तेरी फ़ुर्क़त के दिन हम पे बहुत भारी गुज़रते हैं
तो तन्हाई में यादों का शीराज़ा देख लेते हैं
किया करते हैं ग़ुरबत में इबादत इस तरह से हम
बनाते हैं वुज़ू तस्वीर-ए- का'बा देख लेते हैं
सुना है कुछ भले मानस नई तंज़ीम लाए हैं
चलो इस बार उनका भी इरादा देख लेते हैं
किसी को तो करेंगे मुंतख़ब लेकिन ज़रा पहले
हुकूमत के गुनाहों का ख़ुलासा देख लेते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सियासत: राजनीति; ज़ौक़: समाधान; फ़ुर्क़त: वियोग; तन्हाई: अकेलापन; यादों का शीराज़ा: बिखरी हुई स्मृतियों का संकलन; ग़ुरबत: परदेश; इबादत: आराधना; वुज़ू: देह-शुद्धि; का'बा: इस्लामी मान्यतानुसार पृथ्वी का केंद्र, ईश्वरीय सत्ता का प्रतीक; तंज़ीम: संगठन, दल; मुंतख़ब: निर्वाचित।
लगा के आग बस्ती में तमाशा देख लेते हैं
हमें मालूम है उस ख़त में तुमने क्या लिखा होगा
तुम्हारे ज़ौक़ की ख़ातिर लिफ़ाफ़ा देख लेते हैं
बड़ा मासूम आशिक़ था न मिल पाए कभी उससे
चलो अब चल के छज्जे से जनाज़ा देख लेते हैं
तेरी फ़ुर्क़त के दिन हम पे बहुत भारी गुज़रते हैं
तो तन्हाई में यादों का शीराज़ा देख लेते हैं
किया करते हैं ग़ुरबत में इबादत इस तरह से हम
बनाते हैं वुज़ू तस्वीर-ए- का'बा देख लेते हैं
सुना है कुछ भले मानस नई तंज़ीम लाए हैं
चलो इस बार उनका भी इरादा देख लेते हैं
किसी को तो करेंगे मुंतख़ब लेकिन ज़रा पहले
हुकूमत के गुनाहों का ख़ुलासा देख लेते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सियासत: राजनीति; ज़ौक़: समाधान; फ़ुर्क़त: वियोग; तन्हाई: अकेलापन; यादों का शीराज़ा: बिखरी हुई स्मृतियों का संकलन; ग़ुरबत: परदेश; इबादत: आराधना; वुज़ू: देह-शुद्धि; का'बा: इस्लामी मान्यतानुसार पृथ्वी का केंद्र, ईश्वरीय सत्ता का प्रतीक; तंज़ीम: संगठन, दल; मुंतख़ब: निर्वाचित।