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बुधवार, 14 अगस्त 2013

पानी हराम है ...

वाइज़  को  ख़राबात  में  आने  का  हक़  नहीं
हम  मैकशों  पे   रंग  जमाने   का   हक़  नहीं

मुद्दा-ए-दोस्ती       है      दोस्तों    में    ही  रहे
ग़ैरों  को    हमें    ख़ुम्र  पिलाने  का  हक़  नहीं

ख़ामोश  हैं    हम   उसके  एहतेराम  में  मगर
उसको  हमें    यूं  रोज़  सताने  का   हक़  नहीं

ज़ाहिद   हमें    उस  शहर  का  पानी  हराम  है
मोमिन  को  जहां  जाम  उठाने  का  हक़  नहीं

इस     शहरे-आशिक़ान  के    आदाब   फ़र्क़  हैं
हूरों  को    यां    हिजाब  निभाने  का  हक़  नहीं

नफ़रत    किया  करे  है   जो  अपने अवाम  से
उस  शाह  को  सरकार  चलाने  का  हक़  नहीं !

                                                           ( 2013 )

                                                   -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: वाइज़: धर्मोपदेशक; ख़राबात: मदिरालय; मैकशों: मदिरा-रसिक; मुद्दा-ए-दोस्ती: मित्रता का विषय; ग़ैरों: अन्यों;   ख़ुम्र: नशीला पदार्थ, मदिरा; एहतेराम: सम्मान; ज़ाहिद: धर्मोपदेशक; मोमिन: आस्तिक; हराम: धर्म-विरुद्ध; जाम: मदिरा-पात्र; शहरे-आशिक़ान: प्रेमियों का नगर;  आदाब: शिष्टाचार;  फ़र्क़: भिन्न; हूरों: अप्सराओं;   यां: यहां; हिजाब: पर्दा; नफ़रत: घृणा; अवाम: नागरिक गण।