जो इब्तिदा में ही चश्म नम हैं
तो आइंद: भी कई सितम हैं
सनम अगर हैं हमारे दिल में
तो उनकी नज़्रों में हम ही हम हैं
ख़फ़ा अगर हों तो जान ले लें
हुज़ूर यूं तो बहुत नरम हैं
इधर हैं तूफ़ां उधर तजल्ली
मेरे मकां पे बड़े करम हैं
ज़ुबां खुले तो सलीब तय है
मगर वफ़ा पे दुआएं कम हैं
हमीं ख़ुदा को सफ़ाई क्यूं दें
हमें भी उनपे कई वहम हैं
यहां का सज्दा वहां न कीजो
ख़ुदा, ख़ुदा हैं; सनम, सनम हैं !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: इब्तिदा: आरंभ; चश्म नम: आंखें भीगी; आइंद:: आगे चल कर; सितम: अत्याचार; सनम: प्रिय; नज़्रों: दृष्टि; ख़फ़ा: रुष्ट; हुज़ूर: श्रीमान, मालिक, ईश्वर; तूफ़ां: झंझावात; तजल्ली: आध्यात्म का प्रकाश; मकां: आवास, समाधि, क़ब्र; ज़ुबां: जिव्हा; सलीब: सूली;
वफ़ा: निर्वाह, आस्था; दुआएं: शुभकामनाएं; वहम: संदेह, आशंकाएं; सज्दा: भूमि पर शीश नवाना।
तो आइंद: भी कई सितम हैं
सनम अगर हैं हमारे दिल में
तो उनकी नज़्रों में हम ही हम हैं
ख़फ़ा अगर हों तो जान ले लें
हुज़ूर यूं तो बहुत नरम हैं
इधर हैं तूफ़ां उधर तजल्ली
मेरे मकां पे बड़े करम हैं
ज़ुबां खुले तो सलीब तय है
मगर वफ़ा पे दुआएं कम हैं
हमीं ख़ुदा को सफ़ाई क्यूं दें
हमें भी उनपे कई वहम हैं
यहां का सज्दा वहां न कीजो
ख़ुदा, ख़ुदा हैं; सनम, सनम हैं !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: इब्तिदा: आरंभ; चश्म नम: आंखें भीगी; आइंद:: आगे चल कर; सितम: अत्याचार; सनम: प्रिय; नज़्रों: दृष्टि; ख़फ़ा: रुष्ट; हुज़ूर: श्रीमान, मालिक, ईश्वर; तूफ़ां: झंझावात; तजल्ली: आध्यात्म का प्रकाश; मकां: आवास, समाधि, क़ब्र; ज़ुबां: जिव्हा; सलीब: सूली;
वफ़ा: निर्वाह, आस्था; दुआएं: शुभकामनाएं; वहम: संदेह, आशंकाएं; सज्दा: भूमि पर शीश नवाना।