दोस्त यूं तो कई हमारे हैं
आप लेकिन सभी से प्यारे हैं
आज फिर नींद ने फ़रेब किया
आज फिर ख़्वाब बेसहारे हैं
चोट गहरी हुई सी लगती है
तीर ये: किस नज़र ने मारे हैं
लोग वो: ख़ुशनसीब हैं सारे
जो ग़मे-ज़ीस्त के सहारे हैं
हमको तारीकियां मिटा न सकीं
हम फ़क़त रौशनी से हारे हैं
आपकी हर निगाह के सदक़े
क़र्ज़ हमने कई उतारे हैं
शुक्रे-अल्लाह मौत आई है
मेरे अश'आर अब तुम्हारे हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़रेब: छल; जीवन-दुःख; तारीकियां: अंधकार; फ़क़त: मात्र; सदक़े: न्यौछावर; शुक्रे-अल्लाह: अल्लाह की कृपा;
अश'आर: शे'र का बहुवचन।
आप लेकिन सभी से प्यारे हैं
आज फिर नींद ने फ़रेब किया
आज फिर ख़्वाब बेसहारे हैं
चोट गहरी हुई सी लगती है
तीर ये: किस नज़र ने मारे हैं
लोग वो: ख़ुशनसीब हैं सारे
जो ग़मे-ज़ीस्त के सहारे हैं
हमको तारीकियां मिटा न सकीं
हम फ़क़त रौशनी से हारे हैं
आपकी हर निगाह के सदक़े
क़र्ज़ हमने कई उतारे हैं
शुक्रे-अल्लाह मौत आई है
मेरे अश'आर अब तुम्हारे हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़रेब: छल; जीवन-दुःख; तारीकियां: अंधकार; फ़क़त: मात्र; सदक़े: न्यौछावर; शुक्रे-अल्लाह: अल्लाह की कृपा;
अश'आर: शे'र का बहुवचन।