वैसे तो दुनिया फ़ानी है
सच के साथ परेशानी है
ख़ुद्दारों पर दाग़ लगाना
मग़रूरों की नादानी है
शाहों से डर जाने वालो
यह रुत भी आनी-जानी है
संगीनों पर चल कर जीना
ज़िद अपनी जानी-मानी है
अब जम्हूर कहां रक्खा है
सरकारों की मनमानी है
रैयत उतरी है सड़कों पर
हाकिम को क्यूं हैरानी है
हम भी देखें किन आंखों में
कितना ख़ूं कितना पानी है !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़ानी : नश्वर; ख़ुद्दारों : स्वाभिमानियों; दाग़ : दोष; मग़रूरों : घमंडियों, अहंकारियों; नादानी : अज्ञान; जम्हूर : लोकतंत्र; रैयत : नागरिक गण; हाकिम : आदेश देने वाला, शासक; ख़ूं।
सच के साथ परेशानी है
ख़ुद्दारों पर दाग़ लगाना
मग़रूरों की नादानी है
शाहों से डर जाने वालो
यह रुत भी आनी-जानी है
संगीनों पर चल कर जीना
ज़िद अपनी जानी-मानी है
अब जम्हूर कहां रक्खा है
सरकारों की मनमानी है
रैयत उतरी है सड़कों पर
हाकिम को क्यूं हैरानी है
हम भी देखें किन आंखों में
कितना ख़ूं कितना पानी है !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़ानी : नश्वर; ख़ुद्दारों : स्वाभिमानियों; दाग़ : दोष; मग़रूरों : घमंडियों, अहंकारियों; नादानी : अज्ञान; जम्हूर : लोकतंत्र; रैयत : नागरिक गण; हाकिम : आदेश देने वाला, शासक; ख़ूं।