Translate

गुरुवार, 31 जुलाई 2014

दुआ ज़रूरी है !

दोस्ती  में  वफ़ा  ज़रूरी  है
ख़्वाहिशों  की  ख़ता  ज़रूरी  है

चोर  दिल  के  हों  या  निगाहों  के
मुजरिमों  को  सज़ा  ज़रूरी  है

मानी-ए-ज़िंदगी  समझने  को
मुफ़लिसी  का  मज़ा  ज़रूरी  है

मस्लके-इश्क़  के  मुजाहिद में
ज़ब्त  का  माद्दा  ज़रूरी  है

ये  जो  एहसास  की  तिजारत  है
इसमें  सबका  नफ़ा  ज़रूरी  है

रूह  जब  राह  से  भटक  जाए
तो  नया  फ़लसफ़ा  ज़रूरी  है

चाहिए  इक  सनम  इबादत  को
आशिक़ी  में  ख़ुदा  ज़रूरी  है

हम  चले  अर्श  की  ज़ियारत  पर
आपकी  भी  दुआ  ज़रूरी  है  !


                                                      (2014)

                                             -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ख़्वाहिशों: इच्छाओं; ख़ता: अपराध, दोष; मुजरिमों: अपराधियों; मानी-ए-ज़िंदगी: जीवन का यथार्थ; मुफ़लिसी: निर्धनता, निस्पृहता; मस्लके-इश्क़: प्रेम का पंथ; मुजाहिद: धर्म-योद्धा; ज़ब्त: सहिष्णुता; माद्दा: सामर्थ्य; एहसास: भावनाएं; तिजारत: व्यापार, लेन-देन; नफ़ा: लाभ; फ़लसफ़ा: दर्शन, चिंतन; सनम: प्रिय पात्र; इबादत: पूजा; अर्श: आकाश, देवलोक; ज़ियारत: तीर्थयात्रा।