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बुधवार, 22 जनवरी 2014

... ज़हर लाए हैं !

दर्द  लाए  हैं  के:  अश्'आर-ए-असर  लाए  हैं
आज  क्या  आप  कोई  ख़ास  ख़बर  लाए  हैं

चंद  अल्फ़ाज़े-हुनर  और  कुछ  नए  एहसास
जो  भी  लाए  हैं  बिना  कोर-कसर  लाए  हैं

नाज़ो-अंदाज़  पे  इतराएं  क्यूं  न  वो:  अपने
लूट  कर  हमसे  दिलकशी  की  बहर  लाए  हैं

एक  ही  बूंद  से  क़िस्सा  तमाम  कर  डाला
सुब्हान अल्लाह !  बड़ा  तेज़  ज़हर  लाए  हैं

दाद  का  हक़  है  हमें,  काम  बेमिसाल  किया
हम  शबे-तार  की  आंखों  से  सहर  लाए  हैं

राज़  है  कुछ  तो  जो  सीने  में  छिपा  रक्खा  है
जाम  भर-भर  के  जो  ये:  ख़ुम्रे-नज़र  लाए  हैं

दिल  बिछाएं  के:  नज़र  कोई  तो  इस्ला:  कीजे
तोहफ़:-ए-नूर  ख़ुदा  फिर  मेरे  घर  लाए  हैं !

                                                                            ( 2014 )

                                                                      -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: अश्'आर-ए-असर: प्रभावी शे'र; अल्फ़ाज़े-हुनर: दक्षता-पूर्ण शब्द; नाज़ो-अंदाज़: भाव-भंगिमाएं; दिलकशी की बहर: मनमोहक छंद; सुब्हान अल्लाह: साधु-साधु; दाद: प्रशंसा; बेमिसाल: अनुपम; शबे-तार: अमावस्या; सहर: उष:काल; राज़: रहस्य; जाम: मदिरा-पात्र; ख़ुम्रे-नज़र: दृष्टि-रूपी मदिरा; इस्ला: : परामर्श; तोहफ़:-ए-नूर: प्रकाश का उपहार।