बात पूरी अगर न हो पाए
आज शायद सहर न हो पाए
ख़्वाब जो साथ छोड़ दें अपना
रात फिर उम्र भर न हो पाए
बात हो इस तरह निगाहों में
दुश्मनों को ख़बर न हो पाए
इश्क़ करते हुए ख़याल रहे
ज़िंदगी ये: ज़हर न हो पाए
यार की नींद में पनाह न हो
ख़्वाब यूं शब-बदर न हो पाए
अहले-ईमां को इश्क़ का हक़ है
दिल इधर से उधर न हो पाए
फ़िक्रे-दुनिया भी कीजिए लेकिन
जां पे बेजा असर न हो पाए
रूह को मग़फ़िरत ज़रूरी है
बस ख़ुदा बेख़बर न हो पाए !
(2013)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ईमानदार, आस्थावान; फ़िक्रे-दुनिया: सांसारिक चिंता; रूह: आत्मा; मग़फ़िरत: मोक्ष।
आज शायद सहर न हो पाए
ख़्वाब जो साथ छोड़ दें अपना
रात फिर उम्र भर न हो पाए
बात हो इस तरह निगाहों में
दुश्मनों को ख़बर न हो पाए
इश्क़ करते हुए ख़याल रहे
ज़िंदगी ये: ज़हर न हो पाए
यार की नींद में पनाह न हो
ख़्वाब यूं शब-बदर न हो पाए
अहले-ईमां को इश्क़ का हक़ है
दिल इधर से उधर न हो पाए
फ़िक्रे-दुनिया भी कीजिए लेकिन
जां पे बेजा असर न हो पाए
रूह को मग़फ़िरत ज़रूरी है
बस ख़ुदा बेख़बर न हो पाए !
(2013)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ईमानदार, आस्थावान; फ़िक्रे-दुनिया: सांसारिक चिंता; रूह: आत्मा; मग़फ़िरत: मोक्ष।