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गुरुवार, 21 अगस्त 2014

...तो ख़ुदा भी करेंगे !

सितम  भी  करेंगे,  हया  भी  करेंगे
मिरे  साथ  वो  और  क्या-क्या  करेंगे ?

ग़ज़ब  फ़लसफ़ा  है  मिरे  दुश्मनों  का
जिसे  ज़ख़्म  देंगे,  दवा  भी  करेंगे

जिन्हें  नाज़  था  कमसिनी  में  अना  पर
ज़ईफ़ी  में  वो  इल्तिजा  भी  करेंगे

उन्हें  बज़्म  में    याद  आई   हमारी
बुलाएंगे    तो     रास्ता    भी  करेंगे

नई  सल्तनत  का  नया  क़ायदा  है
ख़ता  जो  करें,  फ़ैसला  भी  करेंगे

जिए   जाएंगे    शायरी     के    सहारे
कि  घर  के  लिए  कुछ  नया  भी  करेंगे

अक़ीदत  मुकम्मल  अगर  है  हमारी
किसी  दिन  सितारे  वफ़ा  भी  करेंगे

ज़रूरी  नहीं  है  कि  हमने  किसी  को
सनम  कर  लिया  तो  ख़ुदा  भी  करेंगे  !

                                                                   (2014)

                                                           -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: सितम: अत्याचार; हया: लज्जा; ग़ज़ब: विलक्षण; फ़लसफ़ा: जीवन-दर्शन; दुश्मनों: प्रिय जनों (व्यं.); नाज़: गर्व; कमसिनी: कम आयु, युवावस्था; अना: अहंकार; ज़ईफ़ी: वृद्धावस्था; इल्तिजा: प्रार्थना; बज़्म: गोष्ठी; रास्ता: मार्ग, व्यवस्था; सल्तनत: राज; क़ायदा: नियम; ख़ता: अपराध; अक़ीदत: आस्था; मुकम्मल: सम्पूर्ण; वफ़ा: निर्वाह; सनम  कर  लिया: प्रिय बनाया।