तेरा ख़याल निगाहों में फिर संवर आया
यहां वहां से लौट के परिंद: घर आया
हमें वो: अजनबी जो तूर पर नज़र आया
ख़याल क्यूं उसी का फिर शबो-सहर आया
असर तेरा है के: बस ख़ाम-ख़याली मेरी
रग़े-जिगर में तेरा अक्स फिर उभर आया
मिले तो इस तरह के: नाम तक न पूछ सके
नशा नज़र का मगर रूह तक उतर आया
नफ़स-नफ़स में तेरा नाम लिए जाते थे
तुझे ख़याल हमारा लबे-सफ़र आया
उतर गया जो शख़्स एक बार नज़रों से
हमारे दिल में पलट के न उम्र भर आया
ख़ुदा क़सम ये: तेरा शहर छोड़ देंगे हम
दिलों के बीच कहीं फ़ासला अगर आया !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तूर: अरब में सीना की वादी में स्थित एक मिथकीय पर्वत जहां हज़रत मूसा को ख़ुदा के नूर की एक झलक मिली;
शबो-सहर: रात और प्रात:; ख़ाम-ख़याली: व्यर्थ भ्रम; रग़े-जिगर: हृदय की पेशी; अक्स: छाया, प्रतिबिम्ब;
नफ़स-नफ़स: सांस-सांस; लबे-सफ़र: (अंतिम) यात्रा पर निकलते समय; फ़ासला:अंतराल।
यहां वहां से लौट के परिंद: घर आया
हमें वो: अजनबी जो तूर पर नज़र आया
ख़याल क्यूं उसी का फिर शबो-सहर आया
असर तेरा है के: बस ख़ाम-ख़याली मेरी
रग़े-जिगर में तेरा अक्स फिर उभर आया
मिले तो इस तरह के: नाम तक न पूछ सके
नशा नज़र का मगर रूह तक उतर आया
नफ़स-नफ़स में तेरा नाम लिए जाते थे
तुझे ख़याल हमारा लबे-सफ़र आया
उतर गया जो शख़्स एक बार नज़रों से
हमारे दिल में पलट के न उम्र भर आया
ख़ुदा क़सम ये: तेरा शहर छोड़ देंगे हम
दिलों के बीच कहीं फ़ासला अगर आया !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तूर: अरब में सीना की वादी में स्थित एक मिथकीय पर्वत जहां हज़रत मूसा को ख़ुदा के नूर की एक झलक मिली;
शबो-सहर: रात और प्रात:; ख़ाम-ख़याली: व्यर्थ भ्रम; रग़े-जिगर: हृदय की पेशी; अक्स: छाया, प्रतिबिम्ब;
नफ़स-नफ़स: सांस-सांस; लबे-सफ़र: (अंतिम) यात्रा पर निकलते समय; फ़ासला:अंतराल।