गुल में भी हुस्ने-यार के अंदाज़ चाहिए
ख़ामोश रंगो-बू को भी आवाज़ चाहिए
शिद्दत-ए-तिश्नगी-तिफ़्ल है बहुत मगर
मासूम ख़यालात को परवाज़ चाहिए
देखे हैं हमने ख़ूब सितमगर बयां तिरे
अब दिल में जो निहा हैं वही राज़ चाहिए
क़ुर्बान न हों आप अभी शाह के लिए
मैदाने-इश्क़ में भी तो जांबाज़ चाहिए
तकरीर से तस्वीर बदलती हो तो हमें
दोज़ख़ में तेरी तरहा बयांबाज़ चाहिए
सफ़ में हैं तलबगार यहां से वहां तलक
मस्जिद के दायरे में करमसाज़ चाहिए
ये: इक़्तिदारे-ज़ुल्म कई उम्र जी चुका
अब दौरे-इंक़िलाब का आग़ाज़ चाहिए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गुल : पुष्प; हुस्ने-यार : प्रिय का सौन्दर्य; अंदाज़ : भंगिमा; रंगो-बू : रंग एवं गंध ; शिद्दत-ए-तिश्नगी-तिफ़्ल : छोटे बच्चे की प्यास की तीव्रता, यहां संदर्भ कर्बला का, जहां छह माह के अली असग़र अ.स. के वध का ; मासूम : अबोध ; ख़यालात : कल्पनाओं ; परवाज़ : उड़ान ; सितमगर : अत्याचारी ; बयां : वक्तव्य ; निहा : छिपे हुए ; राज़ : रहस्य, अप्रकट उद्देश्य ; क़ुर्बान : बलि ; मैदाने-इश्क़ : प्रेम-युद्ध ; जांबाज़ : प्राण दांव पर लगाने वाला ; तकरीर : भाषण ; तस्वीर : परिदृश्य ; दोज़ख़ : नर्क ; तरहा : तरह, भांति ; बयांबाज़ : खोखली बातें करने वाला ; सफ़ : पंक्ति, नमाज़ के समय खड़े लोग ; तलबगार : याचक ; दायरे : सीमा ; करमसाज़ : कृपा करके दिखाने वाला ; इक़्तिदारे-ज़ुल्म : अत्याचार की सत्ता ; उम्र : आयु, जन्म ; दौरे-इंक़िलाब : क्रांति / परिवर्त्तन काल ; आग़ाज़ : आरंभ ।
ख़ामोश रंगो-बू को भी आवाज़ चाहिए
शिद्दत-ए-तिश्नगी-तिफ़्ल है बहुत मगर
मासूम ख़यालात को परवाज़ चाहिए
देखे हैं हमने ख़ूब सितमगर बयां तिरे
अब दिल में जो निहा हैं वही राज़ चाहिए
क़ुर्बान न हों आप अभी शाह के लिए
मैदाने-इश्क़ में भी तो जांबाज़ चाहिए
तकरीर से तस्वीर बदलती हो तो हमें
दोज़ख़ में तेरी तरहा बयांबाज़ चाहिए
सफ़ में हैं तलबगार यहां से वहां तलक
मस्जिद के दायरे में करमसाज़ चाहिए
ये: इक़्तिदारे-ज़ुल्म कई उम्र जी चुका
अब दौरे-इंक़िलाब का आग़ाज़ चाहिए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गुल : पुष्प; हुस्ने-यार : प्रिय का सौन्दर्य; अंदाज़ : भंगिमा; रंगो-बू : रंग एवं गंध ; शिद्दत-ए-तिश्नगी-तिफ़्ल : छोटे बच्चे की प्यास की तीव्रता, यहां संदर्भ कर्बला का, जहां छह माह के अली असग़र अ.स. के वध का ; मासूम : अबोध ; ख़यालात : कल्पनाओं ; परवाज़ : उड़ान ; सितमगर : अत्याचारी ; बयां : वक्तव्य ; निहा : छिपे हुए ; राज़ : रहस्य, अप्रकट उद्देश्य ; क़ुर्बान : बलि ; मैदाने-इश्क़ : प्रेम-युद्ध ; जांबाज़ : प्राण दांव पर लगाने वाला ; तकरीर : भाषण ; तस्वीर : परिदृश्य ; दोज़ख़ : नर्क ; तरहा : तरह, भांति ; बयांबाज़ : खोखली बातें करने वाला ; सफ़ : पंक्ति, नमाज़ के समय खड़े लोग ; तलबगार : याचक ; दायरे : सीमा ; करमसाज़ : कृपा करके दिखाने वाला ; इक़्तिदारे-ज़ुल्म : अत्याचार की सत्ता ; उम्र : आयु, जन्म ; दौरे-इंक़िलाब : क्रांति / परिवर्त्तन काल ; आग़ाज़ : आरंभ ।