तमाम उम्र गुज़ारी है ये: दुआ करते
हमारे दोस्त किसी रोज़ तो वफ़ा करते
कहीं सुराग़ तो पाएं के: ऐतबार करें
वो: इश्क़ में हैं तो क्यूं कर न राब्ता करते
हमें उम्मीद नहीं अब किसी शिफ़ाई की
तबीब थक चुके हैं मुल्क की दवा करते
ये: हुक्मराने-वतन हैं के: दुश्मने-जां हैं
ज़रा भी शर्म नहीं क़ौम से दग़ा करते
उन्हें क़ुसूर न दीजे के: बदगुमां हैं वो:
हमीं को वक़्त नहीं था के: आशना करते
वहां वो: बज़्मे-दुश्मनां में पढ़ रहे हैं ग़ज़ल
यहां तड़प रहे हैं हम ख़ुदा-ख़ुदा करते
मेरे शहर में नफ़रतों के बीज मत बोना
यहां ज़मीं में असलहे नहीं उगा करते !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: वफ़ा: निर्वाह; चिह्न, संकेत, सूत्र; ऐतबार: विश्वास; राब्ता: संपर्क; शिफ़ाई: आरोग्य; तबीब: चिकित्सक;
हुक्मराने-वतन: देश के शासक; दुश्मने-जां: प्राण-शत्रु; क़ौम: राष्ट्र; दग़ा: धोखाधड़ी; क़ुसूर: दोष; बदगुमां: भ्रमित, बहके हुए;
आशना: संगी-साथी; बज़्मे-दुश्मनां: शत्रुओं के आयोजन, सभा; नफ़रतों: घृणाओं; असलहे: अस्त्र-शस्त्र।
हमारे दोस्त किसी रोज़ तो वफ़ा करते
कहीं सुराग़ तो पाएं के: ऐतबार करें
वो: इश्क़ में हैं तो क्यूं कर न राब्ता करते
हमें उम्मीद नहीं अब किसी शिफ़ाई की
तबीब थक चुके हैं मुल्क की दवा करते
ये: हुक्मराने-वतन हैं के: दुश्मने-जां हैं
ज़रा भी शर्म नहीं क़ौम से दग़ा करते
उन्हें क़ुसूर न दीजे के: बदगुमां हैं वो:
हमीं को वक़्त नहीं था के: आशना करते
वहां वो: बज़्मे-दुश्मनां में पढ़ रहे हैं ग़ज़ल
यहां तड़प रहे हैं हम ख़ुदा-ख़ुदा करते
मेरे शहर में नफ़रतों के बीज मत बोना
यहां ज़मीं में असलहे नहीं उगा करते !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: वफ़ा: निर्वाह; चिह्न, संकेत, सूत्र; ऐतबार: विश्वास; राब्ता: संपर्क; शिफ़ाई: आरोग्य; तबीब: चिकित्सक;
हुक्मराने-वतन: देश के शासक; दुश्मने-जां: प्राण-शत्रु; क़ौम: राष्ट्र; दग़ा: धोखाधड़ी; क़ुसूर: दोष; बदगुमां: भ्रमित, बहके हुए;
आशना: संगी-साथी; बज़्मे-दुश्मनां: शत्रुओं के आयोजन, सभा; नफ़रतों: घृणाओं; असलहे: अस्त्र-शस्त्र।