नोंच कर फेंक दिए घोंसले परिंदों के
अब भी अरमान अधूरे हैं कुछ दरिंदों के
लोग तूफ़ान से बच-बच के निकल जाते हैं
क्या फ़रिश्ते भी मुहाफ़िज़ नहीं चरिन्दों के
जाम में अक्से-ज़ुल्फ़ बाम पे निगाहे-ख़ुदा
होश क्यूं कर न फ़ाख़्ता हों आज रिंदों के !
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( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: परिंदों: पक्षियों; दरिंदों: हिंस्र पशुओं; फ़रिश्ते: देवदूत; मुहाफ़िज़: रक्षक; चरिन्दों: घास चरने वाले पशुओं; जाम: मदिरा-पात्र; अक्से-ज़ुल्फ़: लट का प्रतिबिम्ब; बाम: झरोखा; रिंदों: मद्यपों।
* ग़ज़ल फ़िलहाल नामुकम्मल है, वजह है क़ाफ़ियात का दायरा बेहद तंग होना …
** ऐतिहासिक मिथक के अनुसार, सोमनाथ मंदिर को लूटने वाले सुल्तान महमूद ग़ज़नवी का एक बेहद सुंदर ग़ुलाम था, अयाज़। एक रात जब अयाज़ महमूद के प्याले में शराब ढाल रहा था तो महमूद को उसकी ज़ुल्फ़ों की परछाईं शराब में दिखाई पड़ी.... महमूद उसी क्षण अयाज़ पर मोहित हो गया और फिर उसे दिन-रात साथ रखे रहा, अपनी मृत्यु होने तक ! इसी को लेकर अज़ीम शायर अल्लामा इक़बाल ने एक लाजवाब ग़ज़ल कही है, जिस का मक़ता है:
'न वो: हुस्न में रही शोख़ियां न वो: इश्क़ में रही गर्मियां
न वो: ग़ज़नवी में तड़प रही न वो: ख़म है ज़ुल्फ़े-अयाज़ में !'
अब भी अरमान अधूरे हैं कुछ दरिंदों के
लोग तूफ़ान से बच-बच के निकल जाते हैं
क्या फ़रिश्ते भी मुहाफ़िज़ नहीं चरिन्दों के
जाम में अक्से-ज़ुल्फ़ बाम पे निगाहे-ख़ुदा
होश क्यूं कर न फ़ाख़्ता हों आज रिंदों के !
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( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: परिंदों: पक्षियों; दरिंदों: हिंस्र पशुओं; फ़रिश्ते: देवदूत; मुहाफ़िज़: रक्षक; चरिन्दों: घास चरने वाले पशुओं; जाम: मदिरा-पात्र; अक्से-ज़ुल्फ़: लट का प्रतिबिम्ब; बाम: झरोखा; रिंदों: मद्यपों।
* ग़ज़ल फ़िलहाल नामुकम्मल है, वजह है क़ाफ़ियात का दायरा बेहद तंग होना …
** ऐतिहासिक मिथक के अनुसार, सोमनाथ मंदिर को लूटने वाले सुल्तान महमूद ग़ज़नवी का एक बेहद सुंदर ग़ुलाम था, अयाज़। एक रात जब अयाज़ महमूद के प्याले में शराब ढाल रहा था तो महमूद को उसकी ज़ुल्फ़ों की परछाईं शराब में दिखाई पड़ी.... महमूद उसी क्षण अयाज़ पर मोहित हो गया और फिर उसे दिन-रात साथ रखे रहा, अपनी मृत्यु होने तक ! इसी को लेकर अज़ीम शायर अल्लामा इक़बाल ने एक लाजवाब ग़ज़ल कही है, जिस का मक़ता है:
'न वो: हुस्न में रही शोख़ियां न वो: इश्क़ में रही गर्मियां
न वो: ग़ज़नवी में तड़प रही न वो: ख़म है ज़ुल्फ़े-अयाज़ में !'