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सोमवार, 11 सितंबर 2017

सुर्ख़ परचम के लिए...

साफ़  मौसम  के  लिए  कुछ  कीजिए
ज़ुल्फ़  के  ख़म  के  लिए  कुछ  कीजिए

दुश्मनों  पर  सर्फ़  करते  हो  वफ़ा
काश ! हमदम  के  लिए  कुछ  कीजिए

ताक़यामत  तोड़ना  मुमकिन  न  हो
उन  मरासिम  के  लिए  कुछ  कीजिए

दर्द  हो  थोड़ा-बहुत  तो  झेल  लें
शिद्दते-ग़म  के  लिए  कुछ  कीजिए

ज़ख़्म  देने  थे  जिन्हें  वो:  दे  चुके
आप  मरहम  के  लिए  कुछ  कीजिए

ज़र्द  क्यूं  हो  बाग़ियों  का  हौसला
सुर्ख़  परचम  के  लिए  कुछ  कीजिए

मौत  घर  के  सामने  तक  आ  गई
ख़ैर  मक़दम  के  लिए  कुछ  कीजिए  !

                                                                         (2017)

                                                                    -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ज़ुल्फ़  के  ख़म : लटों का घुंघरालापन ; सर्फ़ : व्यय; वफ़ा : आस्था; काश : अच्छा हो यदि; हमदम : अंत तक साथ निभाने वाले ; ताक़यामत : प्रलय होने तक : मुमकिन : संभव ; मरासिम : स्नेह संबंधों ; शिद्दते-ग़म : दु:ख की तीव्रता ; ज़ख़्म : घाव ; ज़र्द : पीला, मलिन; बाग़ियों : विद्रोहियों;  हौसला : उत्साह; सुर्ख़  परचम : लाल ध्वजा ; ख़ैर  मक़दम : स्वागत l