पूछिए किसने मर्तबा पाया
हर कहीं दिल बुझा-बुझा पाया
जो न थे आपकी नज़र में हम
किस तरह दिल में रास्ता पाया
या इलाही ! हमें मु'आफ़ न कर
तेरी तख़्लीक़ में मज़ा पाया
लोग कहते थे शाहे-मीर उसे
हमने देखा तो सर झुका पाया
रोएगा वो हज़ारहा दिल को
गर ज़माना हमें भुला पाया
ये फ़रिश्ते हमें न बख़्शेंगे
घर हमारा कहीं खुला पाया
गुमशुदा है हमें ख़बर कीजे
आपने गर कहीं ख़ुदा पाया !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : मर्तबा : उच्च पद, प्रतिष्ठा; या इलाही : हे ईश्वर; मु'आफ़ : क्षमा; तख़्लीक़: सृष्टि; शाहे-मीर: पहल करने वाला शासक;
हज़ारहा : सहस्रों बार; गुमशुदा : खोया हुआ।
हर कहीं दिल बुझा-बुझा पाया
जो न थे आपकी नज़र में हम
किस तरह दिल में रास्ता पाया
या इलाही ! हमें मु'आफ़ न कर
तेरी तख़्लीक़ में मज़ा पाया
लोग कहते थे शाहे-मीर उसे
हमने देखा तो सर झुका पाया
रोएगा वो हज़ारहा दिल को
गर ज़माना हमें भुला पाया
ये फ़रिश्ते हमें न बख़्शेंगे
घर हमारा कहीं खुला पाया
गुमशुदा है हमें ख़बर कीजे
आपने गर कहीं ख़ुदा पाया !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : मर्तबा : उच्च पद, प्रतिष्ठा; या इलाही : हे ईश्वर; मु'आफ़ : क्षमा; तख़्लीक़: सृष्टि; शाहे-मीर: पहल करने वाला शासक;
हज़ारहा : सहस्रों बार; गुमशुदा : खोया हुआ।