जिन्हें दिल लगाने की आदत नहीं है
उन्हें भी ग़मे-दिल से राहत नहीं है
वो: नाहक़ हमें अपना दुश्मन न समझें
हमारी किसी से अदावत नहीं है
बड़े ख़ुश हुए आज ये: जान कर हम
के: उनको भी हमसे शिकायत नहीं है
तआनुक़ से घबरा गए आप यूं ही
ये: ताबिश-ए-ख़ूं है हरारत नहीं है
तुम्हें अपने दिल में बिठाएं तो कैसे
तुम्हारी अदा में शराफ़त नहीं है
मेरे मुस्कुराने पे नाराज़ क्यूं हैं
ये: ज़िंदा दिली है शरारत नहीं है
वो: कैसा ख़ुदा है के: जिसकी नज़र में
फ़क़त दुश्मनी है इनायत नहीं है !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ग़मे-दिल: हृदय की पीड़ा; नाहक़: व्यर्थ; अदावत: शत्रुता; तआनुक़: आलिंगन;
ताबिश-ए-ख़ूं: रक्त की ऊष्णता; हरारत: ज्वर; शराफ़त: सभ्यता; ज़िंदा दिली: जीवंतता; फ़क़त: मात्र; इनायत: कृपा।
उन्हें भी ग़मे-दिल से राहत नहीं है
वो: नाहक़ हमें अपना दुश्मन न समझें
हमारी किसी से अदावत नहीं है
बड़े ख़ुश हुए आज ये: जान कर हम
के: उनको भी हमसे शिकायत नहीं है
तआनुक़ से घबरा गए आप यूं ही
ये: ताबिश-ए-ख़ूं है हरारत नहीं है
तुम्हें अपने दिल में बिठाएं तो कैसे
तुम्हारी अदा में शराफ़त नहीं है
मेरे मुस्कुराने पे नाराज़ क्यूं हैं
ये: ज़िंदा दिली है शरारत नहीं है
वो: कैसा ख़ुदा है के: जिसकी नज़र में
फ़क़त दुश्मनी है इनायत नहीं है !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ग़मे-दिल: हृदय की पीड़ा; नाहक़: व्यर्थ; अदावत: शत्रुता; तआनुक़: आलिंगन;
ताबिश-ए-ख़ूं: रक्त की ऊष्णता; हरारत: ज्वर; शराफ़त: सभ्यता; ज़िंदा दिली: जीवंतता; फ़क़त: मात्र; इनायत: कृपा।