जिन्हें न होश रहा ज़िंदगी की राहों का
सुना रहे हैं हमें फ़लसफ़ा गुनाहों का
मिला न पीर हमें कोई इस ज़माने में
तलाशते हैं पता रोज़ ख़ानक़ाहों का
'लगो न शाह के मुंह', 'दूर रहो हाकिम से'
ज़रा बताएं कि हम क्या करें सलाहों का ?
ख़्याल नेक नहीं है तिरी अदालत का
मिज़ाज ठीक नहीं है मिरे गवाहों का
कहीं बहार न बादे-सबा, न 'अच्छे दिन'
फ़रेब है हुज़ूर आपकी निगाहों का
बुज़ुर्गे-क़ौमो-दीन, वाल्दैन ही काफ़ी
हुआ न हमसे एहतराम कभी शाहों का
तिरे गुनाह ख़ुदा गिन रहा है बरसों से
हिसाब मांग रहा है तमाम आहों का !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़लसफ़ा: दर्शन; पीर: सिद्ध व्यक्ति; ख़ानक़ाहों: मठों, सिद्ध व्यक्तियों का स्थान; हाकिम: प्रशासक, अधिकारी; नेक: शुभ, अच्छा; मिज़ाज: मनःस्थिति; बादे-सबा: सबेरे की पुरवाई; फ़रेब: छल, कपट; बुज़ुर्गे-क़ौमो-दीन: राष्ट्र और धर्म के पूर्वज, मान्य व्यक्ति;
वाल्दैन: माता-पिता; एहतराम: सम्मान।
सुना रहे हैं हमें फ़लसफ़ा गुनाहों का
मिला न पीर हमें कोई इस ज़माने में
तलाशते हैं पता रोज़ ख़ानक़ाहों का
'लगो न शाह के मुंह', 'दूर रहो हाकिम से'
ज़रा बताएं कि हम क्या करें सलाहों का ?
ख़्याल नेक नहीं है तिरी अदालत का
मिज़ाज ठीक नहीं है मिरे गवाहों का
कहीं बहार न बादे-सबा, न 'अच्छे दिन'
फ़रेब है हुज़ूर आपकी निगाहों का
बुज़ुर्गे-क़ौमो-दीन, वाल्दैन ही काफ़ी
हुआ न हमसे एहतराम कभी शाहों का
तिरे गुनाह ख़ुदा गिन रहा है बरसों से
हिसाब मांग रहा है तमाम आहों का !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़लसफ़ा: दर्शन; पीर: सिद्ध व्यक्ति; ख़ानक़ाहों: मठों, सिद्ध व्यक्तियों का स्थान; हाकिम: प्रशासक, अधिकारी; नेक: शुभ, अच्छा; मिज़ाज: मनःस्थिति; बादे-सबा: सबेरे की पुरवाई; फ़रेब: छल, कपट; बुज़ुर्गे-क़ौमो-दीन: राष्ट्र और धर्म के पूर्वज, मान्य व्यक्ति;
वाल्दैन: माता-पिता; एहतराम: सम्मान।