सर उठाओ बहार की ख़ातिर
ख़्वाब पर एतबार की ख़ातिर
मुल्क के नौजवां परेशां हैं
मुस्तक़िल रोज़गार की ख़ातिर
पैदलों को हलाक़ मत कीजे
लश्करे-शहसवार की ख़ातिर
सरफिरे लोग जां लुटाते हैं
शाह के इक़्तेदार की ख़ातिर
मुफ़्त में सर न काटिए अपना
आशिक़ी के वक़ार की ख़ातिर
शाह की जूतियां उठाएं क्या
शायरी में मेयार की ख़ातिर ?!
दौड़ कर अर्श से चले आए
लोग दीदारे-यार की ख़ातिर !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बहार:बसंत; ख़ातिर:हेतु; एतबार:विश्वास, आस्था; मुस्तक़िल : स्थायी; रोज़गार : आजीविका; हलाक़ : वध, हत्या; लश्करे-शहसवार : अश्वारोही सैन्य दल; सरफिरे : मनोरोगी; इक़्तेदार : सत्ता; वक़ार: प्रतिष्ठा; मेयार: उच्च स्थान।
ख़्वाब पर एतबार की ख़ातिर
मुल्क के नौजवां परेशां हैं
मुस्तक़िल रोज़गार की ख़ातिर
पैदलों को हलाक़ मत कीजे
लश्करे-शहसवार की ख़ातिर
सरफिरे लोग जां लुटाते हैं
शाह के इक़्तेदार की ख़ातिर
मुफ़्त में सर न काटिए अपना
आशिक़ी के वक़ार की ख़ातिर
शाह की जूतियां उठाएं क्या
शायरी में मेयार की ख़ातिर ?!
दौड़ कर अर्श से चले आए
लोग दीदारे-यार की ख़ातिर !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बहार:बसंत; ख़ातिर:हेतु; एतबार:विश्वास, आस्था; मुस्तक़िल : स्थायी; रोज़गार : आजीविका; हलाक़ : वध, हत्या; लश्करे-शहसवार : अश्वारोही सैन्य दल; सरफिरे : मनोरोगी; इक़्तेदार : सत्ता; वक़ार: प्रतिष्ठा; मेयार: उच्च स्थान।