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गुरुवार, 2 जून 2016

दर्दे-दिल की वजह

हैं  परेशान  जो  ज़माने   से
रब्त  कर  लें  किसी  दिवाने  से

दर्दे-दिल  की  वजह  रहे  हैं  जो
क्या  मिलेगा  उन्हें  सुनाने  से

दोस्तों  पर  अगर  भरोसा  है
क्यूं  जिरह  कीजिए  बहाने  से

हिज्र  के  वक़्त  हौसला  देंगे
ख़्वाब  रख  दें  कहीं  ठिकाने  से

ख़ुम्र  का  रंग  उड़  गया  सारा
शैख़  को  बज़्म  में  बुलाने  से

सामना  कीजिए  दिलेरी  से
ज़ुल्म  बढ़ता  है  सर  झुकाने  से

सब्र  रक्खें  जनाबे-इज़राइल
चल  दिए  हम  ग़रीबख़ाने  से  !

                                                             (2016)

                                                     -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ : रब्त : संपर्क, मेलजोल ; दर्दे-दिल : मन की पीड़ा ; वजह : कारण ; जिरह : तर्क-वितर्क ; हिज्र: वियोग ; हौसला : साहस ; ख़ुम्र : मदिरा ; शैख़ : उपदेशक ; बज़्म : सभा, समूह, आयोजन ; दिलेरी : साहसिकता ; ज़ुल्म : अत्याचार ; सब्र : धैर्य ; जनाब : श्रीमान ; इज़राइल : मृत्यु दूत ; इस्लामी दर्शन में यम के समकक्ष ; ग़रीबख़ाने : अकिंचन के / अपने घर ।