जो लोग सर झुका के बग़ल से निकल गए
उनके उसूल वक़्त से पहले बदल गए
हर हाल में नसीब नए ज़ख़्म ही रहे
दिल की लगी बुझी तो मेरे हाथ जल गए
साक़ी ! तेरा रसूख़ किसी ने चुरा लिया
ले देख हम चढ़ा के सुराही संभल गए
जिनको तलाशे-ख़ुल्द थी सब बेइमान थे
दोज़ख़ के ऐश देख के अरमां मचल गए
इन्'आम -ओ- इकराम की हस्रत कहां नहीं
ज़र देख कर ज़मीर हज़ारों फिसल गए
देखे हैं ताजदार हमारे सुकून ने
हम वो नहीं जो भीख उठा कर निकल गए
किस काम की हुज़ूर ये आज़ादिए-सुख़न
गर आप दरिंदों की सदा से दहल गए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: उसूल : सिद्धांत; नसीब : प्रारब्ध; साक़ी : मदिरा परोसने वाला; रसूख़ : प्रतिष्ठा; सुराही : मदिरा-पात्र; ज़ख़्म: घाव; तलाशे-ख़ुल्द: स्वर्ग की खोज; दोज़ख़ : नर्क; ऐश: आनंद; अरमां : अभिलाषाएं; इन्'आम : पुरस्कार; इकराम: कृपाएं; हस्रत : इच्छा; ज़र: स्वर्ण, धन; ज़मीर : विवेक; ताजदार: सत्ताधारी ; सुकून : आत्म-संतोष, धैर्य; आज़ादिए-सुख़न : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता; गर : यदि; दरिंदों : हिंसक पशुओं ; सदा : स्वर, पुकार।
उनके उसूल वक़्त से पहले बदल गए
हर हाल में नसीब नए ज़ख़्म ही रहे
दिल की लगी बुझी तो मेरे हाथ जल गए
साक़ी ! तेरा रसूख़ किसी ने चुरा लिया
ले देख हम चढ़ा के सुराही संभल गए
जिनको तलाशे-ख़ुल्द थी सब बेइमान थे
दोज़ख़ के ऐश देख के अरमां मचल गए
इन्'आम -ओ- इकराम की हस्रत कहां नहीं
ज़र देख कर ज़मीर हज़ारों फिसल गए
देखे हैं ताजदार हमारे सुकून ने
हम वो नहीं जो भीख उठा कर निकल गए
किस काम की हुज़ूर ये आज़ादिए-सुख़न
गर आप दरिंदों की सदा से दहल गए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: उसूल : सिद्धांत; नसीब : प्रारब्ध; साक़ी : मदिरा परोसने वाला; रसूख़ : प्रतिष्ठा; सुराही : मदिरा-पात्र; ज़ख़्म: घाव; तलाशे-ख़ुल्द: स्वर्ग की खोज; दोज़ख़ : नर्क; ऐश: आनंद; अरमां : अभिलाषाएं; इन्'आम : पुरस्कार; इकराम: कृपाएं; हस्रत : इच्छा; ज़र: स्वर्ण, धन; ज़मीर : विवेक; ताजदार: सत्ताधारी ; सुकून : आत्म-संतोष, धैर्य; आज़ादिए-सुख़न : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता; गर : यदि; दरिंदों : हिंसक पशुओं ; सदा : स्वर, पुकार।