नाक़ाबिले-यक़ीं है अगर दास्तां मेरी
बेहतर है काट ले तू इसी दम ज़ुबां मेरी
देखी तेरी दिल्ली तेरी सरकार तेरा दर
सुनता नहीं है कोई शिकायत जहां मेरी
सच बोलना गुनाह हो जिस इक़्तेदार में
नाराज़गी ज़रूर दर्ज हो वहां मेरी
बढ़ता ही जा रहा है बग़ावत का सिलसिला
देखें कि जा रही है कहां तक अज़ां मेरी
यूं ही नहीं मैं कूच:-ए-क़ातिल में आ गया
हर ज़ुल्म के ख़िलाफ़ लड़ी है ज़ुबां मेरी
होकर शहीदे-अम्न मुझे अज़्म वो मिला
हर ज़र्र: कर रहा है कहानी बयां मेरी
जो है क़ुसूरवार उसे दे ख़ुदा सज़ा
मय्यत बिगड़ रही है अगर बे-मकां मेरी !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नाक़ाबिले-यक़ीं : अविश्वसनीय; दास्तां : गाथा, आख्यान; ज़ुबां : जिव्हा; इक़्तेदार: राज, सरकार; नाराज़गी : अप्रसन्नता, असहमति; दर्ज : अंकित; बग़ावत : विद्रोह; सिलसिला : क्रम; अज़ां : पुकार; कूच:-ए-क़ातिल : वधिक की गली; ज़ुल्म : अन्याय; शहीदे-अम्न : शांति की बलि; अज़्म : पहचान, प्रतिष्ठा; ज़र्र : कण; बयां : व्यक्त; क़ुसूरवार : दोषी, अपराधी; सज़ा : दंड; मय्यत : शव; बे-मकां : समाधि के बिना।
बेहतर है काट ले तू इसी दम ज़ुबां मेरी
देखी तेरी दिल्ली तेरी सरकार तेरा दर
सुनता नहीं है कोई शिकायत जहां मेरी
सच बोलना गुनाह हो जिस इक़्तेदार में
नाराज़गी ज़रूर दर्ज हो वहां मेरी
बढ़ता ही जा रहा है बग़ावत का सिलसिला
देखें कि जा रही है कहां तक अज़ां मेरी
यूं ही नहीं मैं कूच:-ए-क़ातिल में आ गया
हर ज़ुल्म के ख़िलाफ़ लड़ी है ज़ुबां मेरी
होकर शहीदे-अम्न मुझे अज़्म वो मिला
हर ज़र्र: कर रहा है कहानी बयां मेरी
जो है क़ुसूरवार उसे दे ख़ुदा सज़ा
मय्यत बिगड़ रही है अगर बे-मकां मेरी !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नाक़ाबिले-यक़ीं : अविश्वसनीय; दास्तां : गाथा, आख्यान; ज़ुबां : जिव्हा; इक़्तेदार: राज, सरकार; नाराज़गी : अप्रसन्नता, असहमति; दर्ज : अंकित; बग़ावत : विद्रोह; सिलसिला : क्रम; अज़ां : पुकार; कूच:-ए-क़ातिल : वधिक की गली; ज़ुल्म : अन्याय; शहीदे-अम्न : शांति की बलि; अज़्म : पहचान, प्रतिष्ठा; ज़र्र : कण; बयां : व्यक्त; क़ुसूरवार : दोषी, अपराधी; सज़ा : दंड; मय्यत : शव; बे-मकां : समाधि के बिना।