बड़ी हसरत से तुमको देखते हैं
मुहब्बत के सितम को देखते हैं
तू जल्व:गर हुआ है हुस्न-ए-जां में
तेरे अहल-ए-करम को देखते हैं
मुअज़्ज़िन से कहो छेड़े न हमको
नज़र - भर के सनम को देखते हैं
सफ़र राह-ए-ख़ुदा का है क़यामत
ठहर के पेच-ओ-ख़म को देखते हैं
ख़ुदा है वो: मेरा या नाख़ुदा है
निगाहों के भरम को देखते हैं।
( 2012 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जल्व:गर : प्रकट; हुस्न-ए-जां : प्रिय का सौंदर्य; अहल-ए-करम: कृपा-पात्र ;
मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला ; पेच-ओ-ख़म: घुमाव और मोड़ ; नाख़ुदा: मांझी
मुहब्बत के सितम को देखते हैं
तू जल्व:गर हुआ है हुस्न-ए-जां में
तेरे अहल-ए-करम को देखते हैं
मुअज़्ज़िन से कहो छेड़े न हमको
नज़र - भर के सनम को देखते हैं
सफ़र राह-ए-ख़ुदा का है क़यामत
ठहर के पेच-ओ-ख़म को देखते हैं
ख़ुदा है वो: मेरा या नाख़ुदा है
निगाहों के भरम को देखते हैं।
( 2012 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जल्व:गर : प्रकट; हुस्न-ए-जां : प्रिय का सौंदर्य; अहल-ए-करम: कृपा-पात्र ;
मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला ; पेच-ओ-ख़म: घुमाव और मोड़ ; नाख़ुदा: मांझी