हैं गुनहगार हम ज़माने के
वक़्त को आइना दिखाने के
आपको कुछ गिला नहीं हमसे
खेल हैं ये: महज़ सताने के
रूठ जाएं मगर ख़याल रहे
हम भी उस्ताद हैं मनाने के
मश्क़ करते रहें निभाने की
दिन मुबारक क़रीब आने के
दर्द दिल के सहेज कर रखिए
ये: नहीं बज़्म को सुनाने के
कीजिए कुछ जतन मियां वाइज़
मैकदे में हमें बुलाने के
बुत हमारा बना रहे हैं वो:
जो मुहाफ़िज़ हैं क़त्लख़ाने के !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गुनहगार: अपराधी; गिला: आक्षेप; महज़: मात्र; मश्क़: अभ्यास; मुबारक: शुभ हों; बज़्म: सभा, गोष्ठी;
जतन: यत्न; वाइज़: धर्मोपदेशक; मदिरालय; बुत: मूर्त्ति; मुहाफ़िज़: संरक्षक; क़त्लख़ाना: वध-गृह।
वक़्त को आइना दिखाने के
आपको कुछ गिला नहीं हमसे
खेल हैं ये: महज़ सताने के
रूठ जाएं मगर ख़याल रहे
हम भी उस्ताद हैं मनाने के
मश्क़ करते रहें निभाने की
दिन मुबारक क़रीब आने के
दर्द दिल के सहेज कर रखिए
ये: नहीं बज़्म को सुनाने के
कीजिए कुछ जतन मियां वाइज़
मैकदे में हमें बुलाने के
बुत हमारा बना रहे हैं वो:
जो मुहाफ़िज़ हैं क़त्लख़ाने के !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गुनहगार: अपराधी; गिला: आक्षेप; महज़: मात्र; मश्क़: अभ्यास; मुबारक: शुभ हों; बज़्म: सभा, गोष्ठी;
जतन: यत्न; वाइज़: धर्मोपदेशक; मदिरालय; बुत: मूर्त्ति; मुहाफ़िज़: संरक्षक; क़त्लख़ाना: वध-गृह।