ख़ुल्द की अब हमें याद आती नहीं
और हूरें हमें अब बुलाती नहीं
एक तो वक़्त पर मौत आती नहीं
आए तो बिन लिए साथ जाती नहीं
एक हम ही हमेशा निशाना बने
ज़ीस्त यूं भी सभी को सताती नहीं
कोई शिकवा नहीं कोई रंजिश नहीं
कुछ अदाएं हमें बस, लुभाती नहीं
लोग अब इश्क़ से भी झुलसने लगे
इसलिए बर्क़ दिल को लगाती नहीं
काश! सुनते कभी आप दिल की सदा
तो नज़र राह में डबडबाती नहीं
जिस्म ही है सभी मुश्किलों की वजह
रूह को कोई आतिश जलाती नहीं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुल्द: स्वर्ग; हूरें: अप्सराएं; ज़ीस्त: जीवन; शिकवा: अप्रसन्नता; रंजिश: वैमनस्य; अदाएं: हाव-भाव; बर्क़: तड़ित, आकाशीय विद्युत; जिस्म: शरीर; रूह: आत्मा; आतिश: अग्नि।
और हूरें हमें अब बुलाती नहीं
एक तो वक़्त पर मौत आती नहीं
आए तो बिन लिए साथ जाती नहीं
एक हम ही हमेशा निशाना बने
ज़ीस्त यूं भी सभी को सताती नहीं
कोई शिकवा नहीं कोई रंजिश नहीं
कुछ अदाएं हमें बस, लुभाती नहीं
लोग अब इश्क़ से भी झुलसने लगे
इसलिए बर्क़ दिल को लगाती नहीं
काश! सुनते कभी आप दिल की सदा
तो नज़र राह में डबडबाती नहीं
जिस्म ही है सभी मुश्किलों की वजह
रूह को कोई आतिश जलाती नहीं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुल्द: स्वर्ग; हूरें: अप्सराएं; ज़ीस्त: जीवन; शिकवा: अप्रसन्नता; रंजिश: वैमनस्य; अदाएं: हाव-भाव; बर्क़: तड़ित, आकाशीय विद्युत; जिस्म: शरीर; रूह: आत्मा; आतिश: अग्नि।