नाकामिए-हयात पे हैरां नहीं हूं मैं
वैसे भी तेरे ज़र्फ़ का पैमां नहीं हूं मैं
शक़ क्यूं न हो मुझे कि तू मेरा ख़ुदा नहीं
गर तू ये सोचता है कि इंसां नहीं हूं मैं
शायर हूं दिलनवाज़ हूं पुख़्ता ख़याल हूं
फिर भी किसी के ख़्वाब का मेहमां नहीं हूं मैं
तू ख़द्दो-ख़ाल से कोई बेहतर ख़्याल ला
ग़ुस्ताख़ तिफ़्ले-हुस्न का अरमां नहीं हूं मैं
ज़ाया न कर समझ को समझने में यूं मुझे
इस उम्र के लिहाज़ से आसां नहीं हूं मैं
सज्दा करूं करूं न करूं सोच रहा हूं
चल मान ले कि साहिबे-ईमां नहीं हूं मैं
नन्ही-सी इक ख़ुशी हूं मुझे शुक्रिया न कह
दिल पर किसी ग़रीब के एहसां नहीं हूं मैं !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नाकामिए-हयात: जीवन की असफलताओं; हैरां: चकित, विस्मित; तेरे: यहां, ईश्वर के; ज़र्फ़ : सामर्थ्य, गांभीर्य; पैमां: मापक; गर: यदि; दिलनवाज़: भावनाओं का सम्मान करने वाला ; पुख़्ता ख़याल: पुष्ट/ठोस विचारों वाला ; ख़्वाब: स्वप्न; मेहमां : अतिथि; ख़द्दो-ख़ाल: शारीरिक सौंदर्य; ग़ुस्ताख़: उद्दंड; तिफ़्ले-हुस्न: सुंदर बच्चे; अरमां: आकांक्षा; ज़ाया: व्यर्थ; उम्र:आयु, समय, काल-खंड; लिहाज़ : अनुसार; आसां : सरल; सज्दा: भूमि पर मस्तक टिकाना; साहिबे-ईमां : आस्थावान, आस्तिक; ग़रीब: निर्धन, असहाय; एहसां : अनुग्रह।
वैसे भी तेरे ज़र्फ़ का पैमां नहीं हूं मैं
शक़ क्यूं न हो मुझे कि तू मेरा ख़ुदा नहीं
गर तू ये सोचता है कि इंसां नहीं हूं मैं
शायर हूं दिलनवाज़ हूं पुख़्ता ख़याल हूं
फिर भी किसी के ख़्वाब का मेहमां नहीं हूं मैं
तू ख़द्दो-ख़ाल से कोई बेहतर ख़्याल ला
ग़ुस्ताख़ तिफ़्ले-हुस्न का अरमां नहीं हूं मैं
ज़ाया न कर समझ को समझने में यूं मुझे
इस उम्र के लिहाज़ से आसां नहीं हूं मैं
सज्दा करूं करूं न करूं सोच रहा हूं
चल मान ले कि साहिबे-ईमां नहीं हूं मैं
नन्ही-सी इक ख़ुशी हूं मुझे शुक्रिया न कह
दिल पर किसी ग़रीब के एहसां नहीं हूं मैं !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नाकामिए-हयात: जीवन की असफलताओं; हैरां: चकित, विस्मित; तेरे: यहां, ईश्वर के; ज़र्फ़ : सामर्थ्य, गांभीर्य; पैमां: मापक; गर: यदि; दिलनवाज़: भावनाओं का सम्मान करने वाला ; पुख़्ता ख़याल: पुष्ट/ठोस विचारों वाला ; ख़्वाब: स्वप्न; मेहमां : अतिथि; ख़द्दो-ख़ाल: शारीरिक सौंदर्य; ग़ुस्ताख़: उद्दंड; तिफ़्ले-हुस्न: सुंदर बच्चे; अरमां: आकांक्षा; ज़ाया: व्यर्थ; उम्र:आयु, समय, काल-खंड; लिहाज़ : अनुसार; आसां : सरल; सज्दा: भूमि पर मस्तक टिकाना; साहिबे-ईमां : आस्थावान, आस्तिक; ग़रीब: निर्धन, असहाय; एहसां : अनुग्रह।