दिल में रहा, निगाह बचा कर चला गया
वो: शख़्स हमें राह भुला कर चला गया
हम बदगुमां न थे वो: मगर मेह्रबां न था
अच्छे दिनों के ख़्वाब दिखा कर चला गया
शायद किसी ज़ेह्न का मुबारक ख़्याल था
मुरझाए हुए फूल खिला कर चला गया
ये क्या तिलिस्म है दिले-वादा-निबाह का
आया ज़रूर, ख़्वाब में आ कर चला गया
क्या ख़ूब दोस्त था कि जहां मोड़ आ गया
कमबख़्त वहीं हाथ छुड़ा कर चला गया
मेरे शहर में दूर तलक रौशनी नहीं
एहसास तिरा दिल को बुझा कर चला गया
मदहोश हुक्मरां को कोई फ़िक्र ही नहीं
आया ग़ुबार, शहर जला कर चला गया !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बदगुमां: भ्रमित; मेह्रबां: कृपालु; ज़ेह्न: मस्तिष्क; मुबारक: शुभ; तिलिस्म: कूट-प्रपंच, टोना; दिले-वादा-निबाह: निर्वाह करने वाले का हृदय; एहसास: अनुभूति; मदहोश: उन्मत्त; हुक्मरां: प्रशासक; ग़ुबार: झंझावात।
वो: शख़्स हमें राह भुला कर चला गया
हम बदगुमां न थे वो: मगर मेह्रबां न था
अच्छे दिनों के ख़्वाब दिखा कर चला गया
शायद किसी ज़ेह्न का मुबारक ख़्याल था
मुरझाए हुए फूल खिला कर चला गया
ये क्या तिलिस्म है दिले-वादा-निबाह का
आया ज़रूर, ख़्वाब में आ कर चला गया
क्या ख़ूब दोस्त था कि जहां मोड़ आ गया
कमबख़्त वहीं हाथ छुड़ा कर चला गया
मेरे शहर में दूर तलक रौशनी नहीं
एहसास तिरा दिल को बुझा कर चला गया
मदहोश हुक्मरां को कोई फ़िक्र ही नहीं
आया ग़ुबार, शहर जला कर चला गया !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बदगुमां: भ्रमित; मेह्रबां: कृपालु; ज़ेह्न: मस्तिष्क; मुबारक: शुभ; तिलिस्म: कूट-प्रपंच, टोना; दिले-वादा-निबाह: निर्वाह करने वाले का हृदय; एहसास: अनुभूति; मदहोश: उन्मत्त; हुक्मरां: प्रशासक; ग़ुबार: झंझावात।