तलाशे-नूर में हमने कई दर देख डाले हैं
वो कोहे-तूर, वो मूसा, वो मंज़र देख डाले हैं
लहू-ए-जुस्तजू है, आप जिसको अश्क कहते हैं
कि इस क़तरे ने दरिय:-ओ-समंदर देख डाले हैं
भरोसा ही नहीं तुम पर, तुम्हारी होशियारी पर
बुज़ुर्गों ने कई मुश्ताक़-ओ-मुज़्तर देख डाले हैं
छुपाएंगे कहां तक आप अपनी बेक़रारी को
हमारे ख़्वाब ने बेज़ार बिस्तर देख डाले हैं
हमारा क्या बिगाड़ेंगी, निगाहें हुस्न वालों की
दिले-फ़ौलाद ने शमशीरो-ख़ंजर देख डाले हैं
ये कचरा बीनते बच्चे, ज़रा पेशानियां देखो
कि नाज़ुक़ उम्र में क्या-क्या मनाज़िर देख डाले हैं
सियासत में कहां तख़्ता पलटते देर लगती है
अवामे-हिंद ने कितने क़लंदर देख डाले हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तलाशे-नूर: प्रकाश की खोज; दर: द्वार; कोहे-तूर: मिस्र के साम क्षेत्र में एक मिथकीय पर्वत, जिस पर हज़रत मूसा अ.स. ने ख़ुदा के प्रकाश की झलक देखी थी; मंज़र: दृश्य; लहू-ए-जुस्तजू: अभिलाषाओं का रक्त; अश्क: अश्रु; क़तरे: बूंद; दरिय:-ओ-समंदर: नदी और समुद्र; बुज़ुर्गों: बड़े-बूढ़ों; मुश्ताक़-ओ-मुज़्तर: अभिलाषी और व्यग्र; बेक़रारी:विकलता; बेज़ार: निराश; दिले-फ़ौलाद: इस्पाती हृदय; शमशीरो-खंजर: तलवार और क्षुरी; पेशानियां: मस्तक (बहु.); नाज़ुक़ उम्र: कोमल आयु; मनाज़िर: दृश्य (बहु.); सियासत: राजनीति; तख़्ता: राजासन; अवामे-हिंद: भारतीय जन-गण; क़लंदर: धृष्ट व्यक्ति।
वो कोहे-तूर, वो मूसा, वो मंज़र देख डाले हैं
लहू-ए-जुस्तजू है, आप जिसको अश्क कहते हैं
कि इस क़तरे ने दरिय:-ओ-समंदर देख डाले हैं
भरोसा ही नहीं तुम पर, तुम्हारी होशियारी पर
बुज़ुर्गों ने कई मुश्ताक़-ओ-मुज़्तर देख डाले हैं
छुपाएंगे कहां तक आप अपनी बेक़रारी को
हमारे ख़्वाब ने बेज़ार बिस्तर देख डाले हैं
हमारा क्या बिगाड़ेंगी, निगाहें हुस्न वालों की
दिले-फ़ौलाद ने शमशीरो-ख़ंजर देख डाले हैं
ये कचरा बीनते बच्चे, ज़रा पेशानियां देखो
कि नाज़ुक़ उम्र में क्या-क्या मनाज़िर देख डाले हैं
सियासत में कहां तख़्ता पलटते देर लगती है
अवामे-हिंद ने कितने क़लंदर देख डाले हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तलाशे-नूर: प्रकाश की खोज; दर: द्वार; कोहे-तूर: मिस्र के साम क्षेत्र में एक मिथकीय पर्वत, जिस पर हज़रत मूसा अ.स. ने ख़ुदा के प्रकाश की झलक देखी थी; मंज़र: दृश्य; लहू-ए-जुस्तजू: अभिलाषाओं का रक्त; अश्क: अश्रु; क़तरे: बूंद; दरिय:-ओ-समंदर: नदी और समुद्र; बुज़ुर्गों: बड़े-बूढ़ों; मुश्ताक़-ओ-मुज़्तर: अभिलाषी और व्यग्र; बेक़रारी:विकलता; बेज़ार: निराश; दिले-फ़ौलाद: इस्पाती हृदय; शमशीरो-खंजर: तलवार और क्षुरी; पेशानियां: मस्तक (बहु.); नाज़ुक़ उम्र: कोमल आयु; मनाज़िर: दृश्य (बहु.); सियासत: राजनीति; तख़्ता: राजासन; अवामे-हिंद: भारतीय जन-गण; क़लंदर: धृष्ट व्यक्ति।