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मंगलवार, 4 मार्च 2014

दिल गुनहगार नहीं...

जो तलबगार  नहीं  है
वो:  मिरा  यार  नहीं  है

मुआमला-ए-नज़र  है
दिल  गुनहगार  नहीं  है

ख़्वाब  बेताब  हैं  बहुत
रात  बेज़ार   नहीं  है

गर्मिए-इश्क़  है  ज़रा
कोई  आज़ार  नहीं  है

आप  ज़रयाब  ही  सही
इश्क़  बाज़ार  नहीं  है

ख़्वाबे-आवारगी हूं मैं
मेरा  घरबार  नहीं  है

लाख पसमांदगी  सही 
राह  दुश्वार  नहीं  है

बेशक़ीमत  वफ़ाएं  हैं
तू  ख़रीदार  नहीं  है

मैं  रहे-इंक़ेलाब  हूं
वक़्त  तैयार  नहीं  है  !

                                  ( 2014 )

                           -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: तलबगार: इच्छुक; मुआमला-ए-नज़र: दृष्टि-दोष; गुनहगार: अपराधी; बेताब: उत्कंठित; बेज़ार: चिंतित; गर्मिए-इश्क़: प्रेम का ताप; आज़ार: रोग; ज़रयाब: समृद्ध; यायावरी का स्वप्न; पसमांदगी: थकान; दुश्वार: कठिन; बेशक़ीमत: अति-मूल्यवान; वफ़ाएं: आस्थाएं; रहे-इंक़ेलाब: क्रांति का मार्ग।