निकले हैं वो: पत्थर के सनम , देखते रहिए
क्या-क्या न करेंगे वो: सितम, देखते रहिए
दिल से हटे जो हाथ , के: गर्दन पे आ गए
पहुंचेंगे कहाँ तक ये: करम , देखते रहिए
औरों के मकानों में लगाते थे आग जो
शो'लों में है उनका ही हरम, देखते रहिए
वो: सोचते हैं मुल्क ये: जागीर है उनकी
टूटेगा किस तरह ये: भरम , देखते रहिए
ज़ुल्म-ओ-सितम से अब हमें लड़ना है इक जिहाद
फिर हमने उठाई है क़लम , देखते रहिए।
( 1977 )
-सुरेश स्वप्निल
प्रकाशन: 'नव-भारत', भोपाल। पुनः प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
क्या-क्या न करेंगे वो: सितम, देखते रहिए
दिल से हटे जो हाथ , के: गर्दन पे आ गए
पहुंचेंगे कहाँ तक ये: करम , देखते रहिए
औरों के मकानों में लगाते थे आग जो
शो'लों में है उनका ही हरम, देखते रहिए
वो: सोचते हैं मुल्क ये: जागीर है उनकी
टूटेगा किस तरह ये: भरम , देखते रहिए
ज़ुल्म-ओ-सितम से अब हमें लड़ना है इक जिहाद
फिर हमने उठाई है क़लम , देखते रहिए।
( 1977 )
-सुरेश स्वप्निल
प्रकाशन: 'नव-भारत', भोपाल। पुनः प्रकाशन हेतु उपलब्ध।