दहशत में डालते हैं जुनूनी बयां तेरे
ये: क्या सिखा गए हैं तुझे रहनुमां तेरे
सब लोग परेशां हैं तेरे तौरे-कार से
किसकी हिफ़ाज़तों में बचेंगे मकां तेरे
सदियों से मुंतज़िर हैं तेरी दीद के मगर
अब तक नज़र से दूर हैं नामो-निशां तेरे
भड़का रहे हैं नफ़रतों की आग हर जगह
तुझसे से भी बदज़ुबां हैं कई हमज़ुबां तेरे
जिस ख़द्दो-ख़ाल पे तुझे इतना ग़ुरूर है
मिट्टी में मिल रहेंगे यही जिस्मो-जां तेरे
वो: जो ख़ुदा है आस्मां पे, देखता है सब
देते हैं बद्दुआएं तुझे ख़ुर्दगां तेरे !
दुनिया में हो निबाह न जन्नत में हो जगह
किस काम के मेरे ये: ज़मीं-आसमां: तेरे !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दहशत: आतंक; जुनूनी: उन्मादी; बयां: वक्तव्य; रहनुमां: मार्गदर्शक, गुरुजन; तौरे-कार: कार्य-पद्धति; हिफ़ाज़तों: सुरक्षाओं; मकां: घर, महल आदि; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; दीद: दर्शन; नामो-निशां: चिह्न,लक्षण; बदज़ुबां: अपभाषी, बुरी भाषा बोलने वाले;
हमज़ुबां: समभाषी; ख़द्दो-ख़ाल: शारीरिक सौंदर्य; ग़ुरूर: घमंड; जिस्मो-जां: तन-मन; आस्मां: आकाश; बद्दुआएं: अशुभ-कामनाएं;
ख़ुर्दगां: प्रेम में छले गए लोग।
ये: क्या सिखा गए हैं तुझे रहनुमां तेरे
सब लोग परेशां हैं तेरे तौरे-कार से
किसकी हिफ़ाज़तों में बचेंगे मकां तेरे
सदियों से मुंतज़िर हैं तेरी दीद के मगर
अब तक नज़र से दूर हैं नामो-निशां तेरे
भड़का रहे हैं नफ़रतों की आग हर जगह
तुझसे से भी बदज़ुबां हैं कई हमज़ुबां तेरे
जिस ख़द्दो-ख़ाल पे तुझे इतना ग़ुरूर है
मिट्टी में मिल रहेंगे यही जिस्मो-जां तेरे
वो: जो ख़ुदा है आस्मां पे, देखता है सब
देते हैं बद्दुआएं तुझे ख़ुर्दगां तेरे !
दुनिया में हो निबाह न जन्नत में हो जगह
किस काम के मेरे ये: ज़मीं-आसमां: तेरे !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दहशत: आतंक; जुनूनी: उन्मादी; बयां: वक्तव्य; रहनुमां: मार्गदर्शक, गुरुजन; तौरे-कार: कार्य-पद्धति; हिफ़ाज़तों: सुरक्षाओं; मकां: घर, महल आदि; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; दीद: दर्शन; नामो-निशां: चिह्न,लक्षण; बदज़ुबां: अपभाषी, बुरी भाषा बोलने वाले;
हमज़ुबां: समभाषी; ख़द्दो-ख़ाल: शारीरिक सौंदर्य; ग़ुरूर: घमंड; जिस्मो-जां: तन-मन; आस्मां: आकाश; बद्दुआएं: अशुभ-कामनाएं;
ख़ुर्दगां: प्रेम में छले गए लोग।