कौन-सा ग़म पिएं बता दीजे
और कब तक हमें दग़ा दीजे
आपके पास तो किताबें हैं
आप मुजरिम हमें बना दीजे
दुश्मने-अम्न की हुकूमत है
ख़्वाबो-उम्मीद को सुला दीजे
ताज-ओ-तख़्त,सल्तनत रखिए
मुल्क का क़र्ज़ तो चुका दीजे
दाल-चावल, पियाज़ सब मंहगे
क़ौम को और क्या सज़ा दीजे
जिस्म में जान है अभी बाक़ी
ज़ुल्म का दायरा बढ़ा दीजे
लोग बेताब हैं बग़ावत को
तोप का मुंह इधर घुमा दीजे
सर झुकाना हमें नहीं आता
आप चाहे हमें मिटा दीजे !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दग़ा:छल, कपट; किताबें: पुस्तकें, यहां आशय धर्म-विधि की पुस्तकें; मुजरिम: अपराधी; दुश्मने-अम्न : शांति का शत्रु; हुकूमत: सरकार, शासन; ख़्वाबो-उम्मीद: स्वप्न और आशा; ताज-ओ-तख़्त: मुकुट और सिंहासन; सल्तनत: राज-पाट; मुल्क:देश; क़ौम : राष्ट्र; सज़ा: दंड; जिस्म: देह; ज़ुल्म: अत्याचार; दायरा: व्याप्ति, घेरा; बेताब: उत्कंठित; बग़ावत : विद्रोह ।
और कब तक हमें दग़ा दीजे
आपके पास तो किताबें हैं
आप मुजरिम हमें बना दीजे
दुश्मने-अम्न की हुकूमत है
ख़्वाबो-उम्मीद को सुला दीजे
ताज-ओ-तख़्त,सल्तनत रखिए
मुल्क का क़र्ज़ तो चुका दीजे
दाल-चावल, पियाज़ सब मंहगे
क़ौम को और क्या सज़ा दीजे
जिस्म में जान है अभी बाक़ी
ज़ुल्म का दायरा बढ़ा दीजे
लोग बेताब हैं बग़ावत को
तोप का मुंह इधर घुमा दीजे
सर झुकाना हमें नहीं आता
आप चाहे हमें मिटा दीजे !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दग़ा:छल, कपट; किताबें: पुस्तकें, यहां आशय धर्म-विधि की पुस्तकें; मुजरिम: अपराधी; दुश्मने-अम्न : शांति का शत्रु; हुकूमत: सरकार, शासन; ख़्वाबो-उम्मीद: स्वप्न और आशा; ताज-ओ-तख़्त: मुकुट और सिंहासन; सल्तनत: राज-पाट; मुल्क:देश; क़ौम : राष्ट्र; सज़ा: दंड; जिस्म: देह; ज़ुल्म: अत्याचार; दायरा: व्याप्ति, घेरा; बेताब: उत्कंठित; बग़ावत : विद्रोह ।