हम जहां मंसूरियत पर आ गए
कुछ क़रीबी दोस्त भी कतरा गए
जी, कहा हमने 'अनलहक़' ख़ुल्द में
सूलियां लेकर फ़रिश्ते आ गए
अब न कोहे-तूर ना उसके निशां
कौन मानेगा झलक दिखला गए ?
क्या उन्हें घर पर बुलाना ठीक है
सीन: में जो कोह तक पिघला गए !
नाम उनका पूछते कैसे, मियां
जो वफ़ा के ज़िक्र पर ग़श खा गए !
ख़ूब ग़ालिब ने हमें इस्लाह की
मयपरस्ती का सबक़ सिखला गए
चंद क़दमों का सफ़र है ज़िंदगी
आप आधी राह में पछता गए ?!
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मंसूरियत: हज़रत मंसूर अ. स. का मत, अद्वैतवाद का इस्लामी स्वरूप; 'अनलहक़':'अहं ब्रह्मास्मि', हज़रत मंसूर अ.स. का उद्घोष, जिसके कारण उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया था; ख़ुल्द:स्वर्ग; फ़रिश्ते: देवदूत, मृत्युदूत; कोहे-तूर: अरब की सीना घाटी में स्थित 'तूर' (काला) नामक एक मिथकीय पर्वत, मिथक के अनुसार वहां हज़रत मूसा अ.स. को अल्लाह ने अपनी झलक दिखाई थी; निशां : चिह्न; कोह: पर्वत; वफ़ा:निष्ठा; ज़िक्र:उल्लेख; ग़ालिब:हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महानतम शायर; इस्लाह:परामर्श, शिक्षा; मदिरापान; सबक़:पाठ।
कुछ क़रीबी दोस्त भी कतरा गए
जी, कहा हमने 'अनलहक़' ख़ुल्द में
सूलियां लेकर फ़रिश्ते आ गए
अब न कोहे-तूर ना उसके निशां
कौन मानेगा झलक दिखला गए ?
क्या उन्हें घर पर बुलाना ठीक है
सीन: में जो कोह तक पिघला गए !
नाम उनका पूछते कैसे, मियां
जो वफ़ा के ज़िक्र पर ग़श खा गए !
ख़ूब ग़ालिब ने हमें इस्लाह की
मयपरस्ती का सबक़ सिखला गए
चंद क़दमों का सफ़र है ज़िंदगी
आप आधी राह में पछता गए ?!
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मंसूरियत: हज़रत मंसूर अ. स. का मत, अद्वैतवाद का इस्लामी स्वरूप; 'अनलहक़':'अहं ब्रह्मास्मि', हज़रत मंसूर अ.स. का उद्घोष, जिसके कारण उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया था; ख़ुल्द:स्वर्ग; फ़रिश्ते: देवदूत, मृत्युदूत; कोहे-तूर: अरब की सीना घाटी में स्थित 'तूर' (काला) नामक एक मिथकीय पर्वत, मिथक के अनुसार वहां हज़रत मूसा अ.स. को अल्लाह ने अपनी झलक दिखाई थी; निशां : चिह्न; कोह: पर्वत; वफ़ा:निष्ठा; ज़िक्र:उल्लेख; ग़ालिब:हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महानतम शायर; इस्लाह:परामर्श, शिक्षा; मदिरापान; सबक़:पाठ।