है अजब दीवानगी सय्याद की
चाहता है जां दिले-नाशाद की
चांद के दिल पर गिरी है बर्क़-सी
चांदनी ने क्यूं हमारी याद की
है निगाहे-यार में सारी शिफ़ा
बेवजह अत्तार से फ़र्याद की
आशिक़ी में लुट गए दोनों जहां
नस्ले-आदम शौक़ ने बर्बाद की
रोटियां मत मांगना, फ़ाक़ाकशॉ
सूलियां तैयार हैं जल्लाद की
क्या सिकंदर और क्या चंगेज़, सब
बात करते हैं मिरे फ़ौलाद की
जिस ख़ुदा के हाथ में थी ज़िंदगी
याद उसने मग़फ़िरत के बाद की !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दीवानगी: उन्माद, अतिशय प्रेम; सय्याद: बहेलिया; दिले-नाशाद: दु:खी हृदय; बर्क़: आकाशीय तड़ित, बिजली;
निगाहे-यार: प्रेमी की दृष्टि; अत्तार: दवा बेचने वाला; फ़र्याद: प्रार्थना; नस्ले-आदम: मनुष्य की पीढ़ी; फ़ाक़ाकश: भूखे पेट सोने वाले;
फ़ौलाद: तलवार का लोहा; मग़फ़िरत: मोक्ष ।
चाहता है जां दिले-नाशाद की
चांद के दिल पर गिरी है बर्क़-सी
चांदनी ने क्यूं हमारी याद की
है निगाहे-यार में सारी शिफ़ा
बेवजह अत्तार से फ़र्याद की
आशिक़ी में लुट गए दोनों जहां
नस्ले-आदम शौक़ ने बर्बाद की
रोटियां मत मांगना, फ़ाक़ाकशॉ
सूलियां तैयार हैं जल्लाद की
क्या सिकंदर और क्या चंगेज़, सब
बात करते हैं मिरे फ़ौलाद की
जिस ख़ुदा के हाथ में थी ज़िंदगी
याद उसने मग़फ़िरत के बाद की !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दीवानगी: उन्माद, अतिशय प्रेम; सय्याद: बहेलिया; दिले-नाशाद: दु:खी हृदय; बर्क़: आकाशीय तड़ित, बिजली;
निगाहे-यार: प्रेमी की दृष्टि; अत्तार: दवा बेचने वाला; फ़र्याद: प्रार्थना; नस्ले-आदम: मनुष्य की पीढ़ी; फ़ाक़ाकश: भूखे पेट सोने वाले;
फ़ौलाद: तलवार का लोहा; मग़फ़िरत: मोक्ष ।