सब्र मत तौलिए दिवानों का
है दफ़ीना कई ज़मानों का
रोज़ पैग़ाम रोज़ फ़रियादें
जी नहीं मानता जवानों का
मुल्क के साथ भी दग़ाबाज़ी
क्या करें आपके बयानों का
लूट कहिए डकैतियां कहिए
मश्ग़ला है बड़े घरानों का
बेच डालें ज़हर दवा कह कर
क्या भरोसा नई दुकानों का
सिर्फ़ दो ग़ज़ ज़मीन काफ़ी है
कीजिए क्या बड़े मकानों का
मांग ही लें दुआएं अब हम भी
देख लें ज़र्फ़ आसमानों का !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : सब्र : धैर्य ; दफ़ीना : गुप्त कोष, भूमि में गड़ा कर रखा गया कोष ; ज़मानों :युगों ; पैग़ाम : संदेश ; फ़रियादें : मांगें ; दग़ाबाज़ी : छल-प्रपंच ; बयानों : वक्तव्यों ; मश्ग़ला : अभिरुचि , समय बिताने का साधन ; भरोसा : विश्वास ; ज़र्फ़ : गांभीर्य ; आसमानों : देवलोक ।
है दफ़ीना कई ज़मानों का
रोज़ पैग़ाम रोज़ फ़रियादें
जी नहीं मानता जवानों का
मुल्क के साथ भी दग़ाबाज़ी
क्या करें आपके बयानों का
लूट कहिए डकैतियां कहिए
मश्ग़ला है बड़े घरानों का
बेच डालें ज़हर दवा कह कर
क्या भरोसा नई दुकानों का
सिर्फ़ दो ग़ज़ ज़मीन काफ़ी है
कीजिए क्या बड़े मकानों का
मांग ही लें दुआएं अब हम भी
देख लें ज़र्फ़ आसमानों का !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : सब्र : धैर्य ; दफ़ीना : गुप्त कोष, भूमि में गड़ा कर रखा गया कोष ; ज़मानों :युगों ; पैग़ाम : संदेश ; फ़रियादें : मांगें ; दग़ाबाज़ी : छल-प्रपंच ; बयानों : वक्तव्यों ; मश्ग़ला : अभिरुचि , समय बिताने का साधन ; भरोसा : विश्वास ; ज़र्फ़ : गांभीर्य ; आसमानों : देवलोक ।