न जाने किसे रहनुमा मान बैठे
फ़रेबे ख़ुदा को ख़ुदा मान बैठे
मेरे दर्द को वो कभी दर्द समझे
कभी दर्दे दिल की दवा मान बैठे
तेरी दिलनवाज़ी से मायूस हो कर
तेरे दोस्त हमसे बुरा मान बैठे
मियां जी कहां होश रख आए अपना
अदा को सुबूते वफ़ा मान बैठे
ग़ज़ब हैं तेरी बज़्म के सब सुख़नवर
कि ख़ैरात को ही जज़ा मान बैठे
उन्हें भी बहुत फ़ैज़ हासिल हुआ जो
मेरे मर्सिये को दुआ मान बैठे
वो इंसाफ़ कैसे किसी का करेगा
जो मुजरिम को मुश्किलकुशा मान बैठे !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : रहनुमा: पाठ प्रदर्शक; फ़रेबे ख़ुदा : ईश्वर का भ्रम; दर्दे दिल : मन की पीड़ा; दिलनवाज़ी : घनिष्ठ मैत्री; मायूस : निराश; अदा : अभिनय; सुबूते वफ़ा : आस्था का प्रमाण; ग़ज़ब : अद् भुत; बज़्म : सभा, गोष्ठी; सुख़नवर : साहित्यकार; ख़ैरात : भिक्षा; जज़ा : कर्म फल, प्रारब्ध; फ़ैज़ : यश; मर्सिया : शोक गीत, श्रद्धांजलि; दुआ : प्रार्थना; इंसाफ़ : न्याय; मुजरिम: अपराधी; मुश्किलकुशा: संकट मोचक।
फ़रेबे ख़ुदा को ख़ुदा मान बैठे
मेरे दर्द को वो कभी दर्द समझे
कभी दर्दे दिल की दवा मान बैठे
तेरी दिलनवाज़ी से मायूस हो कर
तेरे दोस्त हमसे बुरा मान बैठे
मियां जी कहां होश रख आए अपना
अदा को सुबूते वफ़ा मान बैठे
ग़ज़ब हैं तेरी बज़्म के सब सुख़नवर
कि ख़ैरात को ही जज़ा मान बैठे
उन्हें भी बहुत फ़ैज़ हासिल हुआ जो
मेरे मर्सिये को दुआ मान बैठे
वो इंसाफ़ कैसे किसी का करेगा
जो मुजरिम को मुश्किलकुशा मान बैठे !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : रहनुमा: पाठ प्रदर्शक; फ़रेबे ख़ुदा : ईश्वर का भ्रम; दर्दे दिल : मन की पीड़ा; दिलनवाज़ी : घनिष्ठ मैत्री; मायूस : निराश; अदा : अभिनय; सुबूते वफ़ा : आस्था का प्रमाण; ग़ज़ब : अद् भुत; बज़्म : सभा, गोष्ठी; सुख़नवर : साहित्यकार; ख़ैरात : भिक्षा; जज़ा : कर्म फल, प्रारब्ध; फ़ैज़ : यश; मर्सिया : शोक गीत, श्रद्धांजलि; दुआ : प्रार्थना; इंसाफ़ : न्याय; मुजरिम: अपराधी; मुश्किलकुशा: संकट मोचक।