आसमां ही दग़ा दे तो मैं क्या करूं
बर्क़ घर पे गिरा दे तो मैं क्या करूं
जो कहा मैंने संजीदगी से कहा
वो: लतीफ़ा बना दे तो मैं क्या करूं
हो चुका हूं बहुत दूर मैं इश्क़ से
कोई ईमां लुटा दे तो मैं क्या करूं
जिसकी दरियादिली पे हमें नाज़ है
वो: बहाना बना दे तो मैं क्या करूं
ख़ुदकुशी की हज़ारों वजूहात हैं
मौत जीना सिखा दे तो मैं क्या करूं
अपनी दीवानगी की ख़बर है मुझे
तू मसीहा बता दे तो मैं क्या करूं
मैं मदीने में बरसों भटकता रहा
कोई झूठा पता दे तो मैं क्या करूं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आसमां: विधाता; दग़ा: धोखा; बर्क़: आकाशीय बिजली; संजीदगी:गंभीरता; लतीफ़ा: चुटकुला; दरियादिली: विशाल-हृदयता; नाज़: गर्व; ख़ुदकुशी: आत्महत्या; वजूहात: ( वजह का बहुव.): कारण; दीवानगी: पागलपन; मसीहा: देवदूत।
बर्क़ घर पे गिरा दे तो मैं क्या करूं
जो कहा मैंने संजीदगी से कहा
वो: लतीफ़ा बना दे तो मैं क्या करूं
हो चुका हूं बहुत दूर मैं इश्क़ से
कोई ईमां लुटा दे तो मैं क्या करूं
जिसकी दरियादिली पे हमें नाज़ है
वो: बहाना बना दे तो मैं क्या करूं
ख़ुदकुशी की हज़ारों वजूहात हैं
मौत जीना सिखा दे तो मैं क्या करूं
अपनी दीवानगी की ख़बर है मुझे
तू मसीहा बता दे तो मैं क्या करूं
मैं मदीने में बरसों भटकता रहा
कोई झूठा पता दे तो मैं क्या करूं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आसमां: विधाता; दग़ा: धोखा; बर्क़: आकाशीय बिजली; संजीदगी:गंभीरता; लतीफ़ा: चुटकुला; दरियादिली: विशाल-हृदयता; नाज़: गर्व; ख़ुदकुशी: आत्महत्या; वजूहात: ( वजह का बहुव.): कारण; दीवानगी: पागलपन; मसीहा: देवदूत।